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________________ १०४ * * प्रवन्धावली * से बहुत लोग परिचित होंगे । लब्धप्रतिष्ठ ऐतिहासिक मि० के० पी० जयसवाल महोदयने उदयगिरि और खण्डगिरिस्थि हस्तिगुफा नामक गुफासे प्राप्त उक्त जैन सम्राट खार्वेलके प्रसिद्ध शिला लेखको विस्तृत आलोचना को है । इसका समय ई० सन्से १७० वर्ष पूर्व निर्धारित हुआ है। इस शिलालेख में सम्राट् खार्वेल द्वारा जैन साधुओं को भांति भांतिके पट्ट वस्त्र और श्वेतवस्त्र देनेका स्पष्ट वर्णन है । अतः यह अकाट्यरूपसे प्रमाणित होता है कि उस समय जैन साधुगण श्वेत और रेशमी वस्त्र भी धारण करते थे । प्रसिद्ध दिगम्बर ग्रन्थ लेखक देवसेनाचार्यने अपनी दशनसार नामक पुस्तक में लिखा है कि सितपट अर्थात् श्वेताम्बर संघकी उत्पत्ति सं० १३६ विक्रमीयमें हुई है परन्तु यह सर्वथा भ्रमात्मक और पक्षपातपूर्ण है । दिगम्बर मतानुसार यदि श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति सं० १३६ माना जाय तो उक्त शिला लिपिमें कथित महाराज खार्वेल द्वारा जैन साधुओं को श्वेतवस्त्र दान देने का वर्णन सम्भव नहीं, क्योंकि यह शिला लेख ही विक्रमाब्द के प्रारम्भ से ११० वर्ष पूर्वका खुदा है। श्वेतास्वर ग्रन्थानुसार महावीर तीर्थंकरके पूर्व, भगवान ऋषभदेवके बादसे भगवान पार्श्वनाथ पर्यंत २२ तीर्थंकरोंके समय में जैन साधुगण वस्त्र व्यवहार करते थे । इसके बाद यानी चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के अभ्युदय कालमें सम्पूर्ण वस्त्र त्यागकी पद्धति चली । इससे यह अनुमान होता है कि भगवान् महावीरके समय तपस्या की कठोरता अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी । महावीर स्वामी गृह त्यागी होकर सन्यास ग्रहण करनेके बाद कुछ समयतक शरीरपर एक वस्त्र धारण करते थे, परन्तु पीछे उन्होंने अपने एकमात्र वस्त्रका भी त्याग कर दिया। उन्होंने किस कारण से सम्पूर्ण वस्त्रोंका परित्याग किया था, इसका निरूपण करना बास्तवमें बड़ा कठिन है । उस समयकी घटनाओं का जो कुछ संग्रह हो सका है, उससे यह प्रगट होता है कि महावीर स्वामीके समय में धार्मिक प्रतियोगिता पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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