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* प्रबन्धावली.
अगर धर्मादा खाता और रकम अपनी खानगी (प्राइवेट) बनावो तो छुटकारा हो सकता है। खैर, 'मरता क्या नहीं करता'.इस न्याय से उन्होंने ऐसा ही किया। अपना परलोक डुबाया, साथ ही धर्मादा फउ भी डूवा । परन्तु तपासणी होती रहती तो ऐसा कदाचित् न होता। किसी २ स्थान में जहाँ श्रीजिनदैत्यालय के लिये धर्माद फंड थे वहां के दृष्टी लोग मंदिर मार्ग छोड़कर तेरेपंथी हुए हैं वे लोग प्रायः उस फंड के उद्देश्य पर उचित ध्यान नहीं देते और अपने नामों से रिपोर्ट बाहर निकालने में उनके साथ में निन्दा और उनके धर्ममें हानि पहुंचानेकी शंका रखते हैं। उन लोगों से भी विनीत प्रार्थना है कि वे इस ख्याल को छोड़ कर इस कार्य को एक श्रीसंघ का उचित और धर्मभार समझ कर उस फण्ड की अच्छी तरह सार संभाल करें और बराबर हिसाब को प्रकट करें। इसी प्रकार बहुत से दृष्टांत देखे जाते हैं और आप लोग रिपोर्ट में भी इस बातका खुलासा सुन चुके हैं। अपनी प्रजा बत्सल गवर्णमेंट मी इस ओर ध्यान देने. बालो थी परन्तु यह कर्त्तव्य खास अपना ही है। यदि अपने आलस्य को त्याग कर इस खातेके सुधार पर पूरी मदद देवें तो आशा है कि यह प्रस्ताव सब जगह कार्यमें परिणत होकर इसका उद्देश्य शीघ्र सफलता को प्राप्त करेगा। प्रस्ताव तो भाई लोगों के सामने हो उपस्थित है और मैं अनुमोदन करता हुआ पूर्ण आशा रखता हूं कि यह प्रस्ताव श्रीवीर शासन को जय बोलते हुए सर्व सम्मति से ग्रहण होगा।
११ वीं जैन श्वेताम्बर कान्फरेन्स १६७४, कलकत्ता के अवसर पर धार्मिक हिसाब तपासणी खाता' विषयक प्रस्ताव के अनुमोदनार्थ
व्याख्यान ; ता० १ जनवरी १९१८ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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