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________________ * प्रबन्धावली. और मान लिया जाय कि रकम ठीक है परन्तु गुमास्तं लोग खास काम के योग्य न हों तो ठीक व्यवस्था होना असम्भव है। ऐसी जगह तपास होने से बहुत सुधार हो सकता है। फिर समझिये ये धोसंघ के तरफ से श्रीमंत और पूरे धर्मानुरागी जानकर जिस शेठ साहूकार को धर्मादे फंडका भार दिया गया था, कहीं २ ऐसा होता है कि वे तो अच्छी तरह अपना कर्तव्य पालन कर परलोक सिधारे और घरको पुण्याई भी उसके साथ गई। जो भौलाद पोछे रही, नालायक निकली। पहिले तो अपना ही घर खराब किया, पीछे उनकी धर्मादे फज पर दृष्टि पड़ी, रकम उठतो गई साथ साथ व्यवस्था में भो गड़बड़ मची। सोवा, श्रीसंघ में अपना पक्ष लेने वाले नहीं रहने से आगे गाड़ा अटक जायगा, अब अन्याय पक्ष बनाने लगे। इस अवसर में यदि सुधारकी व्यवस्था न हो तो कुछ दिन पीछे फिर ऐसे फंड से हाथ धोना पड़ता है। पुनः कई जगह ऐसे फंड के ट्रस्टोलोग आपस वालों को अपनो देख रेख में जो धर्मादा फंड है उससे उधार देते हैं, पर समय पर वसूल करने को चेष्ठा नहीं करते। फिर जब उनके मित्रका काम मंवा पड़ा, उसने इनसालभैंसी ले लिया तो उनको जो धर्मादे की रकम उधार दी गई थी प्रायः सब डूब जाती है। ऐसी हालत में बराबर जांच होती रहे तो यह नतीजा न गुजरे। किसो २ जगह वहोवट करने वाले लोग फजूल काम में ज्यादे रकम सर्च देते हैं वह भो बराबर तपास होती रहतो तो यह उकसान न होने पाता। और अब भी उन स्थानों में तपास होने से माये को हानि रुक सकती है । पुनः किसी २ स्थलों में ऐसा होता है कि बहुत दिनोंसे हिसाब नहीं देखा गया यहांतक कि खुद द्रष्टो ने भी न देखा होगा। फिर जब समय आया, श्री संघ येते, तब दृष्टी साहेब की मा खलो। देखा, बहुत रकम नामें आती है। सायत् बात बढ़े तो क्या करना। तब पहिले वही खाते कजे कर चट वकील के यहां सलाह लेने दौड़े। “द्रव्येन सबैवशाः" । फिर क्या ? फोस मिलते ही ओपिनियन । 'कुछ उपाय तो है नहीं' एक बंदोवस्त हो सकता है, 18 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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