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________________ आगम (४०) [भाग-3] “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्ति:) १ अध्ययनं H, नियुक्ति: [१३३], भाष्यं , विभा गाथा , मूलं - /गाथा-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [९] आवश्यकनियुक्ति एवं मलयगिरिसूरिरचिता वृत्तिः । प्रत सूत्रांक सपोधात- स्वेत्येवं योजना कार्या, सत्रायं गोदृष्टान्त:-एगम्मि नवरे एगेण कस्सइ धुत्तस्स समासे गावी रोगिया रहिउँपि असमत्था व्याख्यानियुक्तिः । निविट्ठा चेव पकिणिया, सो तं पडिविकिणइ, ततो कयगा भणंति-पेच्छामो से गइपयारं दुद्धं च जोएमि ता किणीहामिद | नविधौ सो भणइ-मए एवंविहा उवविट्ठा चेव गहिता, जइ पडिहाइ तुम्हेवि एवमेव गिण्हह, इयरे भणति-जइ तुमं बोदहो गवादि॥१३॥ ताकि अम्हेवि बोद्दहा, वयं न गेण्हामो, एवं जो आयरिओ पुच्छितो परिहारं दाउमसमत्थो भणइ-मएवि एवं सुयं, दृष्टान्ताः तुम्हेवि एवं सुणहत्ति, तस्स सगासे न सोयवं, संसइयपयंमि मिच्छत्तसंभवातो, जो पुण अविकलगोविकिणगो इव गा. १३३ अक्खेवनिण्णयपसंगपारगामी तस्स सगासे सोयवं, सीसोवि अविचारियगाही पढमगोविक्षिणगोव सोय अजोग्गो, इत्यरो अ जोग्गोत्ति । चन्दनकन्थोदाहरणम्-बारयईए वासुदेवस्स तिन्नि भेरीओ, तंजहा-संगामिया अब्भुइया कोमुइया, तत्र प्रथमा सशामकाले समुपस्थिते सामन्तादीनां ज्ञापनार्ध वाद्यते, द्वितीया पुनरागन्तुके कस्मिंश्चित्प्रयोजने समुद्भते लोकानां सामन्तादीनां च परिज्ञापनाय, तृतीया कौमुदीमहोत्सवाद्युत्सवज्ञापनार्थ, तातो तिण्णिवि गोसीसचंद-10 णमइतो देवतापरिग्गहियातो, तसं चउत्थी मेरी असिवप्पसमणी, तीसे उप्पत्ती कहिजइ-तेणं कालेणं तेर्ण समपणं सको देविंदो, सो तत्थ देवलोगे सुरमज्झे वासुदेवस्स गुणकित्तणं करेइ-अहो उत्तमपुरिसा एए अवगुणं न गिण्हंति, नीएण य| जुद्धेण न जुझंति, तत्थ एगो देवो असहहंतो आगतो, वासुदेवोऽवि जिणसगास बंदगो पठितो, सो अंतरा कालसुणयरूवं | |॥१३॥ मययं विउवह दुम्भिमेघ, तस्स मंधेण सबो लोगो पराभग्गो, वासुदेवेण दिट्ठो, भणियं चऽणेण-अहो इमस्स कालसुणयस्स पंडुरा दंता मरगयभायणनिहित्तमुत्तावलीच रेहिंति, देवो चिंतेइ-सर्थ मुणग्माही, ततो वासुदेवस्स आसरयणं कर दीप अनुक्रम JanEdication inary ~300
SR No.035063
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 2 03 Aavashyak Niryukti evam Vrutti Aagam 40 Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages318
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size28 MB
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