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आगम
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भाग-7 "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [२]
मूलं [१...] / गाथा ||६२-६३/६५-६६|| पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४३] मूलसूत्र-[०३] उत्तराध्ययन-नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता
अरति
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||६२६३||
श्रीउत्तरादिट्ठा, णवि जीवंति, णवि मरंति, णवीर निरिक्खंति एकमेकं दिट्टीए, पच्छा रणो सिट्ठ पुरोहितस्स य, जहा इत्थ उ कोइ पब
न. इतो, तेण दोवि जणा विसंखलिऊण मुका, पच्छा राया सब्ववलेण आगओ, पब्बइतगाण मूलं गतो, सोवि साह एगपासे अच्छति || २ परीपहा
परियडूंतो, राया आयरियाणं पादेहिं पडितो, पसायमावज्जह, आयरिएहिं भण्णति-अहं ण याणामि, महाराय ! एत्थ एगो ध्ययने ।
साह पाहुणगो आगतो, जति परं तेण होज्जा, राया तस्स मूलं समागतो, पञ्चभिष्णातो य, ततो तेण साहुणा भणितो-धिरत्यु ते रायत्तणस्स, जो तुम अप्पणो पुत्तभंडाणवि णिग्गई ण करेसि, पच्छा राया भणति-पसायं करेह, मणति–जति पर पव्वयंति दोण्डं मोक्खो, अन्नहा नस्थि, रायणा पुरोहिएण य भण्पति-एवं होउ, पन्चयंतु, पुच्छिया भणंति-पव्ययामो, पुष्वं लोओ कओ, पच्छा मुका, पव्वइया, सो य रायपुत्तो णिसंकिओ चेव धम्म (कृणति ) पुरोहितपुत्तस्स पुण जातिमतो, अम्हे य मड्डाए पब्वाविया, एवं ते दोवि कालं काऊण देवलोगे उबरना, इतो य 'कोसंबीए सेट्ठी' गाहा-(९५-९९)कोसंबीए नयरीए तावसोडू नाम सेट्ठी, सो मरिऊण निययघरे सूयरो जातो, जाईसरो, ततो तस्स चेव दिवसगे पुत्तेहिं मारितो, पच्छा तहिं चेव घरे उरगो जातो, तहिपि जाइस्सरो जातो, तत्थवि अंतो घरे मा खाहितित्ति मारितो, पच्छा पुणोवि पुत्तस्स पुत्तो जातो, तत्थवि जाई सरमाणो चिंतेइ-कई अहं अप्पणो सुण्हं अम्मति वाहरीहामिी, पुतं वा तातंति, पच्छा मयतणं करेति, पच्छा महन्तीभूतो,ट्र साधूणं अल्लीणो, धम्मोऽणेण सुतो, सावगो जातो, इत्तो य धिज्जाइय देवो महाविदेहे तित्थगरं पुच्छति-किमई सुलहबोहिओ दुलभवोहियचि, ततो सामिणा भणिओ-दुल्लमनोहियोऽसि, पुणोवि पुच्छति-कत्थाई उववज्जिस्सामि?, भगवया भण्णति-कोसं-14 | बीए मयस्स भाया भविस्ससि, सो य मूओ पन्यइस्सति, सो देवो भगवंत बंदिऊण गतो मूयगस्सगासं, तस्स सुबहुयं दब
॥६३
दीप अनुक्रम [६५-६६]
उनक
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