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________________ आगम (४३) भाग-7 "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [२] मूलं [१...] / गाथा ||५५-५७/५५-५७|| नियुक्ति : [९१-९२/९१-९२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४३] मूलसूत्र-०३] उत्तराध्ययन-नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि: SY प्रत सूत्रांक २ परीपहा EACHAR गाथा ||५५५७|| श्रीउत्तरा०रणस्स इमा उदाहरणगाहा-- 'तगराइ अरिह' सिलोगो (९२-९०) तगरा णगरी, तत्थ अरिह मित्तणाम आयरिओ, तस्स समीये दत्तो नाम वाणियओ भद्दाभारियओ पुत्तेण य अईमगेण सद्धिं पच्चइतो, सो तं खुडगं ण कइयाइ परीपहा ध्ययने भिक्खाए हिंडाचेति, पढमालियादीहि किमिच्छिएहिं पोसेति, सो सुकुमालो, साहूण अप्पत्तियं, ण तरति किंचि भासिउं, अन्नया सो खंतो कालगतो, साधुहिं तस्स दो तिन्नि व दिवसे दाउं भिक्खस्स उत्तारिओ, सुकुमारसरीरो सो गिम्हे उवरिं ॥५८॥ | हेट्ठा उज्झतो पासे य, तण्हाभिभूतो छायाए वीसमंतो पउत्थवइयाए वणियमहिलाए दिट्ठी, उरालसुकुमालसरीरचिकाउं तीसे तहिं अज्झोववातो जातो, चेडीए सद्दाविओ, 'किं मग्गसिचि', भिक्खं, दिना से मोयगा, पुच्छिओ-कीस तुर्म धर्म करेसि , | भणति-सुहनिमित्तं, भणति-तो मए चेव समाण भोगे मुंजाहि, सो उण्हेण तज्जितो उपसग्गिअंतो य पडिभग्गो, भोगे मुंजति, | सो साहहिं सर्हि मग्गिओ, न दिट्ठो, अप्पसागारियं पविट्ठो. पच्छा से माता ओमत्तिया जाता, पुत्तसोगेण, पागरं भमति अरहण्णयं बिलवंती, जहिं पासति तं तर्हि सव्वं भणति-अस्थि ते कोइ अरहनतो दिट्ठो', एवं विलवमाणी भमति, जावा का अन्नया तेण पुत्तेण ओलोयणगतेण दिट्ठा, पच्चभिण्णाता य, तहेव उत्तरित्ता पाएमु पडितो, ते पेच्छिऊण तहेव वासस्थचित्ता जाता, ताए भण्णति-पुत्त ! पन्वयाहि, मा दुग्गति जाहिसि, सो मणति-ण तरामि काउं संजमं, जइ परं अणसणं करेमि, एवंद करेहि, मा य असंजमो भवाहि, मा संसार भमिहिीस, पच्छा सो तहेव तत्ताए सिलाए पाओवगमणं करेति, मुहुत्तेण सुकुमाल-11॥५८॥ सरीरो सो उपहेण विराओ,पुव्वं तेण णाधियासितो पच्छा अहिआसीओ,एवं अधियासितबंउसिणपरीसहो गतो।इवाणि दंस-11 तामसगपरीसहो 'पुट्ठो य दंसमसएहि सिलोगो (५८ सू०६१) स्पृष्टत्वात् स्पृष्टः, सहारिभिः समरं, वक्ष्यति 'नागो व चि, दीप अनुक्रम [५५-५७] [71]
SR No.035057
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 07 Uttaradhyayan Niryukti Evam Churni Aagam 43
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages302
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size26 MB
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