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आगम
(४३)
भाग-7 "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [४], मूलं [१...] / गाथा ||११५-१२७/११६-१२८|| नियुक्ति : [१७९...२०८/१७९-२०८] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४३] मूलसूत्र-०३] उत्तराध्ययन-नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि:
प्रत
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दृष्टान्ता
सूत्रांक [१] गाथा ||११५१२७||
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श्रीउत्तराला माडिणिमित्तं दिन, ताए गंतु देवदत्ताए भण्णति- अज्ज अयलो तुम सम वसहितित्ति, इमे दिणारा दत्ता, चूर्णी अवरण्हवेलाए आगन्तुं भणति-अज्ज अयलस्स तुरियं कज्जं जायं, तेण गामं गतोत्ति, देवदत्ताए मूलदेवस्स पेसित,४
आगतो मूलदेवो, ताए समाणं अच्छति, गणियामाऊए अयलो संवाहितो, अण्णातो पविट्ठो बहुपुरिससमग्गो, असंस्कृता.
| वेढियं तं गम्भगिह, मृलदेवो य अइसंभमेणं सयणीयस्स हेड्डा णिलुक्को, तेण अलक्खितो, देवदत्ताएवि दासचेडीओ ॥११९॥
| संदिवाओ अयलस्स सरीरमभंगादि घेतृणुषट्टिताता, सोवि तमि चेव सयणिए ठियनिसनो भणह-एत्थ चेव सयणीए ठियं अभंगेह, ताओ भणंति-विणासेज्जति सयणीयं, सो भणति- एचो उक्किट्ठतरं दाहामि, मया एवं सुविणो दिहो जहा सयणीअभंगणउन्बलणण्हाणादि कातध्वं,तो तहा कयं,ताहे णिहाणगोन्लो मूलदेवो,अयलेण वालेसु यकसाय (पगहाय) कडितो,सलत्तो य अणेण-वच्चसु मुक्कोसि, इहरहा ते अज्ज अहं जीवितस्स विवसामि, जति मया जारिसो होज्जाहि तो एवं मुस्चिज्जाहि, ततो मूलदेवो अवमाणितो लज्जाते णिग्गतो उज्जेणीओ पत्थयणविरहितो, वेण्णायर्ड जतो पत्थितो, एगो य से परिसो मिलितो, मूलदेवेण पुच्छितो- कहिं जासि ?, विनायडंति, मूलदेवेण भण्णति-दोवि सम्मं वच्चामोत्ति, तेण संल-एवं भवतुत्ति, दोवि | पट्ठिता, अंतरा य अडवी, तस्स पुरिसस्स संबलं अस्थि, मूलदेवो चिंतेति-एसो मम संबलेण संविभागं करेहित्ति, एण्वि सुए | परे वा एताए आसाए बच्चति,ण से किं(चि) देति,ततो ततियदिवसे छिन्ना अडवी, मूलदेवेण पुच्छितो-गस्थि एत्थ अब्भासे गामो?, | तेण भण्णइ-एस णाइदूरे पंथस्स गामो, मूलदेवेण भण्णति- तुम कत्थ वससि ?, अमृगस्थ गामे, मूलदेवेण भणिओ- तो क्खाइ | अहं इमं गामं वच्चामि, तेण से पंथो उवदिडो, गतो तं गाम मूलदेवो, तत्थ गेण भिक्खं हिंडतेण कुम्मासा लद्धा, पवण्णो य
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दीप अनुक्रम [११६१२८]
॥११९॥
EDIA
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