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आगम
(४३)
भाग-7 "उत्तराध्ययन”- मूलसूत्र-४ (नियुक्ति: + चूर्णि:) अध्ययनं [२], मूलं [१...] | गाथा ||९२-९३/९३-९४|| नियुक्ति: [१२२-१३९/१२३-१४१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४३] मूलसूत्र-[०३] उत्तराध्ययन-नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि:
२ परीषहा
प्रत सूत्रांक [१] गाथा ||९२
हरणं
९३||
श्रीउत्तरायाए परचकेण घेप्पति, पच्छा केणति अमेण भण्णति-'अभितरगा खुभिता' गाथा (१३२-१३६ ) अहवा एगस्थ धिग्जाति चूर्णी होणगरे रावा सयमेव चोरो, पुरोहितो भंडेति, पच्छा दोवि हरंति, पच्छा लोगो भणति-'जत्थ राया सयंच रो' गाहा(१३३-१३६) पुत्रीउदा.
| अहवा एगस्स धिज्जाइयरस धूया, साय जोब्बणत्था पडिरूवदरिसणिज्जा, सो धिज्जाइओ तं पासिऊण तीए धूपाए मझोववमो ||छगलोदाध्ययने
| तीसे तणएण अतीव दुचलीभवति, बंभपाए पुच्छिओ णिबंधेण, कहति, ताए भण्णति- मा अधिीत करेसि, वहा करोमि जहा || ॥८ ॥
केणह पओगेण संपत्ती भवति, पच्छा धूतं भणति- अम्ह पुच्चं दारियं जक्खा भुजंति, पच्छा देज्जति, तव कालपक्खचाउसिए जक्खो एहिति, मा ण विमाणेहि, संमाणहिसि, मा य तत्थ तुम उज्जोतं काहिसि, तीएवि जपखकाऊहल्लेण दीवओ सरावेण | ठइतो, सो य आगतो, सतं परिभोत्तूण रतकीलत्तो पसुत्तो, इमावि कोउगेण सरावगं फोडती, णवरं पेच्छति ताय, ताए नाय, जे होउ त होउ, पुर्व भुंजामि भोगे, पच्छा साई रतिकिलंताई, उग्गतेवि सूरे ण विबुज्झति, पच्छा बंभणी भणति- 'अचिरुग्गतए व सूरिए, मागहिया ( १३४-१३७) पच्छा सा तीसे धूया तं सुणेत्ता पडिभणति-'तुमए व अम्म ए लवे' मागहिया (१३५-१३७ ) पच्छा सा धिज्जाइणी भणति 'नव मास कुच्छीइ धालिता' मागहिया (१३६-५३७ ) अहदा एगेण धिज्जाइतेण तलाग खणावियं, तत्थवि य पालीए देउलं आरामो य कतो, तत्थ य तेण जण्णओ पवचितो, छगलगा एत्थ मारेज्जीत, अण्णया य कयाइ सो धिज्जातिओ मरिऊण छगलिओ चेव आयातो, सो य घेचूण अप्पणिज्जएहिं पुत्तेहिं तत्थ चेव ||८९ ॥ तलाए जण्णि मारिउं णेज्जति, सो य जातिस्मरो णिज्जमाणो अपणोच्चयाए भासाए बोन्बुयति, अप्पणा चेव सोयमाणो, 181 जहा मए चेव पवानिय एयं, सो य त्रुब्धिएमाणो साधुणा एगेण अतिसीसएण दरसति, तेण भण्णति'सयमेव य लुक्स्व लोविया
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दीप अनुक्रम [९३-९४]
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