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________________ आगम (४२) प्रत सूत्रांक H गाथा ॥६-१६॥ दीप अनुक्रम [६-१६] भाग-6 "दशवैकालिक" मूलसूत्र-३ (निर्युक्तिः+ भाष्य |+चूर्णि:) अध्ययनं [२] उद्देशक [H] मूलं [H]/ गाथा: [ ६-१६ / ६-१६] निर्युक्तिः [१५२-१७६/१५२-१७७] भाष्यं [४...] श्रीदशकालिक चूण २ अध्ययने ॥ ७४ ॥ यंतो परिव्वायओ भण्ण, समणो पुख्वभणिओ चैव, बाहिर मंतरहि गंधेहिं निग्गओ निग्गंधो, सव्यप्पगारेण अहिंसाइएहिं जतो संजतो, मुचो बाहिर भंवरगंधेहिं किंच- 'तिष्णो ताली' गाहा (१६१-८४ ) जम्दा य संसारसमुदं तरंति तरिस्संति वा तम्हा तिण्यो ताती य, जम्हा अण्णेवि भविए सिद्धिमहापट्टणं अविग्धपण नयइ तुम्हा नेया, दविओ नाम रागद्दोस विक्को मण्णइ, सावज्जेस मोणं सेवतिति गुणी, खमतीति खतो, इंदियकसाए दमतीति दंतो, पाणवधादीहिं आसवदारेहिं न बढइचि विरतो, अंतपंतेहिं लहेहिं जीवेति लूही, अथवा कोहमाणा दो णेहो मण्णइ, तेसु रहितेसु हे संसारसागरस्स तीरं अत्थयतित्ति वा मग्गइति वा एगट्टा तीरडी, अहवा संसारस्स तीरे ठिओ तेण वीरड्डा, समणस्स एगट्टिया गया । इदाणिं पुब्वयं तं तेरसविहं भण्णइ, तं० 'णामंडवणादविए' गाहा (११२-८४) दुव्यपुण्यं गाहा' ( ) पुब्बिं वीर्य भण्णइ तओ पच्छा अंकुरुप्पत्ती, अहवा पुच्चि खीरं पच्छा दहिं, अहवा पुवि रसो पच्छा फाणितमेवमादि, खेते पुण्ययं णाम पुयि सालीखे समासी पच्छा जवखेचं जायंति, कालपुवं सर्याओ पाउलो रयणीय दिवसो आवलियाए वा समओ, दिसापुव्वं पुब्वा दिसा सा रुयगवेकूखाए, तावखिपु जस्स जओ रोदओ (पण्णवगपुष्वयं) णाम जो जस्स जओ मुद्दो ठियओ पण्णव तं तस्स पुब्वयं, पुव्यपुथ्वयं नाम जं चोदसणं पुव्वाण पढमं पुष्यर्थ, पाहुडपुब्वयं गाम जहा सूरपचसीए पाहुडेसु पढमं तं पाहुडपाहुडेस पाहुडपाडुरपुवं, तस्स वत्थुसुं पढमं वत्युं तं वत्थुपुच्वयं भण्णइ, भावपुव्वयं णाम पंचहे भावाणं उद्भावो भावपुव्यं एवमाइ णामनिष्कण्णो निक्लेवो गओ ॥ इदाणिं भुत्तागमे सुतं उच्चारणीयं अक्खलियं अविध्यामेलियं एवं जहा अणुउओगद्दारे, तं च सुतं जहा 'कहऽहं कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारते (सू. ६-८५) तत्थ कविचि संखा अह दिवसो भष्णह, कवि पुण सो अहाणि कुज्जा सामण्णं पूर्वनिक्षेपाः [87] ॥ ७४ ॥ सर्वत्र एषः चिन्हः मूलं दर्शयते (जहां भी ऐसा चिन्ह बनाया है, वहा नई गाथा या सूत्र का आरम्भ होता है ऐसा समझ लेना)
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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