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________________ आगम (४२) भाग-6 "दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [१], उद्देशक -1, मूलं [-1 / गाथा: [१], नियुक्ति: [३८...९४/३८-९५], भाष्यं [१-४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक गाथा ||१|| श्रीदश-लवादी उबालभितब्बो. में एयं कुसत्थं देषाणुप्पिएण जीवस्स अस्थिभावपडिसेहगं उच्चारियं तं जीवस्सेव पभाषण, कम्हा? , जम्हा पृच्छायां वैकालिक अचेयणा घडादयो भावा जीवभावपडिसेहगाणि सस्थाणि न तरंति उच्चारेउं, तम्हा जीवस्सेच तं सामत्थं, जं तुर्म एवं कुसत्या कौणिका जीवभावपडिसेहगं उच्चारेसिन्ति, भणियं च "जस्व पभावुम्मिल्लियाई तं चैव हयकयग्घाई । कुमुदाई अप्पसमावियाई चंद उवह-16 १ अध्ययने सति ॥१॥" उचालंभत्ति दारं गतं । इदाणिं पुच्छा, जहा कोणिएण रण्णा सामी पुच्छिओ-चक्वट्टियो अपरिचत्तभोगा काल मासे काले किच्चा कहिं उपवज्जंति?, सामिणा भणिय-अहे सत्तमाते उववति, ताहे भणइ-अहं सत्तमीए न कि उववज्जिस्सामि?. सामिणा भणियं-तुमं छहपुढवीए, सो भणइ-अहं सनमीए किं ण उववाज्जस्सामिा, सामिणा भणिय-सत्तमीए चककट्टी उववज्जति सो मणइ-अई किंवा होमि चक्कबड्डी? ममवि चउरासीई रहाईण सयसहस्साणि, सामिणा भणिय-तव रयणाणि नत्थि, वाहे सो कित्ति-17 माई रयणाई करेत्ता ओयवेउमारतो, तिमिसगुहाए पविसिउं पबत्तो, कयमालिएण वारिओ, भणिो य-चोलीणा चक्कट्टिको बारसवि, णस्सिहिसि तुमं, वारिज्जंतो न ठाइ य, पच्छा कयमालिएण आहओ, मओ य छढेि पुढचं गओ, एवं बहुस्सुता बज्ज्ञागमा आयरिया अट्टाणि हेऊणि पुच्छियब्बा, पुच्छित्ता य सक्कणिज्जाणि समारियव्याणि, असक्कणिज्जाणि परिहरियवाणि, मणिय च-"पुच्छह पुच्छाह य पंडिए साहवो चरणजुते । मा मयलेवविलित्ता पारचहियं ण याणिहिह ॥१॥" तहा जीवचिंताएवि णाहियवादिया मण्णंति-कण हेतुणा देवाणुप्पिया! एवं भणहजहाणस्थि जीवादिया भावा, सोयण भणेज्ज-अपच्चक्खचणेणं, जइ पच्चक्खमेव करयल इच आमलगं दीसेज्जा तो नवीर अहं सदहेज्जा, एवं भणतो सो वादी पडिभष्णइ-जदि जे तुम्हारिसेहि चक्खुदंसीहि गोवलब्भह तं णस्थि एवं हिमवंतस्स पचयस्स पलपरिमाणेण गणिज्जमाणस्स पलग्गपरिमाणं पनते न लब्महाला दीप अनुक्रम ASHOLARSHA [१] EXC4k ॥५१॥ [64]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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