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________________ आगम (४२) प्रत सूत्राक H गाथा |||| दीप अनुक्रम [3] भाग-6 “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः + भाष्य |+चूर्णि:) निर्युक्ति: [ ३८... ९४/३८-९५], भाष्यं [१-४] अध्ययनं [१], उद्देशक [-], मूलं [-] / गाथा: [ १ ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४२] मूलसूत्र - [०३] दशवैकालिक निर्युक्तिः एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि सावओचिकाऊण सुभदा दिण्णा, पाणिग्गहणं वर्च, अण्णदा सो भगइ दारियं घरं नेमि, ताहे सो साओ तं भगइ तं सर्व्व उवासमकुलं, एसा तं नाणुवसिहि, पच्छा छोभयं वा लभेज्जत्ति, णिबंधे विसज्जिया, ऊग जुययं घरं कथं, सासुयणणंदाओ पट्टाओ भिक्खूण मति न करेइति, अण्णदा ताहिं सुभद्दाए भचारस्स अक्खायं, एसा सेतपडेहिं समं संसत्ता, सावओ न सदहइ, अण्णदा खमगस्स भिक्खागतस्स अच्छिसि कणुओ पचिट्ठी, सुमहाए जिन्माए सो कणुओ एडिओ, सुभद्दाए य चीणपिट्ठे तिलगो कओ, सो य तस्स खमगस्स निडाले लग्गो, उचासियाहि सावगस्स दरिसिओ, सावरण पत्तियं, ण तहा अणुत्रच, सुभद्दा चिंतेह किं अच्छेयं जं अहं गिद्दत्थि छोभयं लभामि, जे पवयणस्स उड्डाहो एवं मि दुक्खइति सा रति काउस्स*ग्गेण ठिया, देवो आगओ, संदिसाहि किं करेमि ?, सा भणड़ एवं मे अजसे पमज्जाहित्ति, देवो भणड़' एवं भवउ ' अहमेतस्स नगरस्स चत्तारिवि दाराई ठएहामिति, जा जा पतिब्वया होहिति सा एंवाणि दाराणि उघाडेहिति, तत्थ तुमं चेत्र एका उग्घाडिहिसि ताणि कवाडाणि, सयणस्स पच्चयनिमित्तं चालणीए उदगं छोडून दरिसिज्जासि, ततो य चालणीओ फुसितमवि ण गलेहिति, एवं आसासेऊण निग्गओ देवो, नगरदाराणि अणेण ठयाणि, णगरजणोय अष्णो, इओ य आगासे वाया-भो नागरजणा ! मा णिरत्ययं किलिस्सह, जा सीलवती चालणीए से छूढं उदगं न गलइ सा तेण उद्गेण दारं अच्छोडद ततो दारं उग्ध डिज्जिस्थति, तत्थ बहुयाओ सेट्ठिसत्थवाहादीण धूयासुहाओ ण सकेति पिलियं पलभिऊं, ताहे सुभद्दा सयणं पुच्छर, अविसज्जेताण य चालणीए जया उदगं छोट्टणं तेसि पाठिहेरें दरिसेइ तओ विसज्जिया, उवासिगाओ एवं बोलुमाढत्ताजहा एसा समणपडिलेडिया उघाडेदिति, ताहे चालणीए उदगं छूटं, न गिल, पिच्छित्ता बिसण्णा, ततो जणेणं सकारिज्जती तं श्रीदश वैकालिक चूर्णां १ अध्ययने + 1183 11 [62] अनुशा सने सुभद्रा ।। ४२ ।।
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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