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________________ आगम (४२) प्रत सूत्राक H गाथा |||| दीप अनुक्रम [8] भाग-6 “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः + भाष्य |+चूर्णि:) निर्युक्ति: [ ३८... ९४/३८-९५], भाष्यं [१-४] अध्ययनं [१], उद्देशक [-], मूलं [-] / गाथा: [ १ ], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४२] मूलसूत्र- [०३] दशवैकालिक निर्युक्तिः एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि श्रीदशवैकालिक चूण १ अध्ययने ॥ ३६ ॥ वार्ति, तं च सेलेसि पडिवण्णयस्स भवइ, समुच्छिष्ण किरियाणाम जस्स मूलाओ चैव किरिया समुच्छिण्णा, अजोमितिवृत्तं भवद्द, अहवा हमा समुच्छिष्ण किरिया जस्स मूलाउ चैव छिण्णा किरिया, अबंधउत्तिवृत्तं भवति, अपडिवाई णाम जो जोयनिरोषेण अप्पडिएणं चैव केवली कमाई तडतडस्से छिंदिऊण परमणाबाधणं गच्छ एवं समुच्छिष्णकिरियमपडियातिति भण्पर, सुकज्ञाणस्स चउरो मूलभेया वष्णिया । इदाणिं एतेसिं चैव जो जस्स विसयो सो भण्णइ तत्थ आदिल्लाणि दोणि चोहसपुब्बिस्स उत्तमसंघयणस्स उवसंतखीणकसायाणं च भवइ, तत्थ निदरिसणं- 'पढमं वितियं च झायंति, पुव्वाणं जे उ जाणमा । बसंतेहि कसाएहिं खीणेहिं च महागुणी ॥ १ ॥ उचरिल्लाणि पुण केवलिस्स भवति, एत्थ णिदरिसणं, उवरिल्लाणि झाणाणि, तातियो | गुणसिद्धिओ। खीणमोहा झियायंति, केवली दोणि उत्तमे ॥ १ ॥ जदाज्यं परिणाम विसेसेण बिइयज्झाणं बोलीणो तहयं पुण न ताव पावद झाणतरे चैव बट्टत्ति, एयंमि अंतरे केवलणाणं उप्पज्जति, एतेसिं णिदरिसणं- 'ferere area म अंतरंमि उ केवलं । उप्पज्जर अनंतं तु खीणमोहस्स तायिणो ॥ १ ॥ इदाणिं जोगं पट्टच्च भण्णह, तत्थ पढमिल एकमि वा जोगे तिसु वा जोगेसु वट्टमाणस्स भवई, वितियं पुण नियमा तिन्हं जोगाणं अण्णतरे भवर, तइयं कायजोगिणो भवद, चउत्थं अजोगिणो भव, एत्थ निदरिसणं- 'जोगे जोगेसु वा पढमं, बितियं जोगंमि कम्दिवि । तियं च काइए जोगे, चउत्थं च अजोगिणो ॥ १ ॥ इदाणिं लेस्साओ पडुच भण्णइ पढमबियाई सुकलेसाए वट्टमाणस्स भवन्ति, तइयं परमसुकलेसाए बट्टमाणस्स भवति, चउत्थं अलेस्स्स भवइ, भणियं च 'पढमवितियाए मुक्कं ततियं परसुक्कयं । लेस्सातीतं तु उवरिलं, होइ शाणं वियाहियं ||१|| इदाणिं कालं पड़च्च भण्णइ पढमवितियाई जड़ कहंचि कालं करे तओ अणुत्तरेसु उववज्जर, उवरिल्लागि दोणि सिद्धिसाहणाणि, [49] अभ्यन्तरे तपसि ध्यानम् ॥ ३६ ॥
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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