SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४२) भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [८], उद्देशक -, मूलं [१५...] / गाथा: [३३५-३९८/३५१-४१४], नियुक्ति : २९५-३१०/२९३-३०८], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि इन्द्रियादि बैंकालिक प्रत सूत्रांक [१५...] गाथा ||३३५३९८|| प्रणिधिः श्रीदश- गाहापुव्वर्ण भष्णइ, तंजहा- 'मायागारवसाहिओ० ॥ ३०५ ॥ अद्धगाथा, जोऽवि मायासहिओ य इंदियणोइंदियाण निग्गहं करेइ सो अप्पसत्थे पणिधी, तत्थ मायासहिया इंदियपणिही इमा, तंजहा- मुणमाणोऽविण आलवेज्जा, वरं लोगो चूर्णी जाणतो जहा अहो झाणोवगओ एसोति, उक्तं च-"निमीलयेदक्षि निमीलितेन, आकुप्यमानो बधिरा(म)भावात् । प्रत्यक्षवादी न | ८ आचार | भवेत् कदाचित, (स) प्राप्तकाले असिवस्थिते य (व छिनत्ति) ॥१॥ तहा चोरो व दव्वकारणा य गोविव पसंतदिही अच्छइ, प्रणिधीर दामा मे हुन्तं दिदि पासिऊण कोइ गिण्हेज्जा, तहा कोइ पुरिसो माहिलाए संसत्तो पागडं दिद्विविगारंण दरिसयइ जो घेप्पति, ॥२६८॥ भणियं च- 'विरहे अंजलिकरे परे, जगाउले अणवयक्ख वच्चतं । वीर! विणीय! वियक्खणा, को णाम तुमे न कामेज्जा ॥१॥ तहा अन्यायमाणोऽवि कोइ परतित्थियाई जितिादेयाऽहमिति लोगपस्थि(न्ति)णिमित्वं दुन्भिगंधस्स णो उब्बियइ, तहा उक्कडोऽवि | रस लन्भमाणे मायाए णो गेण्हइ, गोमयं सेवालं च भक्खेइ, तहा कडमुच्छिओ कोयि फरिसमाणोऽविण बेतिचि, एवमादि मायासेविस्स पंचविधा इंदियपणीधी अप्पसत्था भवति, तथा गारवेणावि, कोयि मणुस्सो सद्दे सुणमाणेवि ण आयर करेइ, वरं लोगो जाणतो अणुभूयकल्लाणो एसोति, एवं कंताणि रूवाणि वा पासंतो गारवण अणादरं करेइ, बरं लोगो जाणतो बहा एतस्स एतेसु जहा न विम्हयत्ति, एवं गंधरसफासावि भाणियन्वा, भणिया इंदियपणिधी । दाणि णोइंदियपणिधी भण्णइ, तत्थ मायाए सीकट्ठोऽवि आकास दरिसइ, मा सो पडिसंवादी णासिहित्ति उत्तरं वा देहिति एवमादि, गारखे जहा मा मे अमुगो । जाणिहिचि जहा एसो कोवित्तिकाऊण सीकट्ठभावो अच्छइ ण आकारं करेति, माणेवि, मायाए, कोऽवि कुलवंसउद्धरणनिमित्तं णीयछिद्दण्णेसी वक्कमइ, गारये उदाहरणं नत्थि, जम्हा जो चेव माणो सो चेव गारचो, लोभे जइ कोइ पुव्वं मायासहियं जिणा %ACADRESCAMES दीप अनुक्रम [३५१४१४] ॥२६८॥ CRICK [281]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy