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________________ आगम (४२) “भाग-6 “दशवैकालिक"- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [१], उद्देशक [-], मूलं -1/[गाथा:], नियुक्ति: [३४/३४-३७], भाष्यं [-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि श्रीदशवैकालिक प्रत सूत्रांक १अध्ययने H ॥१३॥ R5%4599 G जीवस्स मा भितिक्खयं करेहिइ तो से दिज्जइ आहारो, ण वण्याइहेउ । अक्खत्ति जहा सगडस्स जत्तासाहणट्ठा अभंगो दिज्जद, अध्ययनएवं संजमभरवहणत्थं आहारेयब्वं । उसुत्ति जहा रहिओ लक्खं विधिउकामो तदुवउत्तो विधड, वक्खित्तचित्तो फिट्टइ, एवं साहवि कार्थाः उवउत्तो भिक्खं हिंडंतो संजमलक्खं विधइ, पक्खिप्पतो सदाइएसु फिट्टइ । पुत्तिात्त पुसमंसोबमो आहारो भोत्तम्बो । गोलित्ति || जहा जतुमि गोलए कज्जमाणे जइ अग्गिणा अतिल्लियाविज्जइ ता अतिदवत्तणेण न सका काउं, अह व नेवल्लियाविज्जइ नो चेव । निम्घरति, णातिदूरे णातिआसणे अकए सकइ बंधिउं, एवं भिक्खापविट्ठो साह जइ अइभूमीए विसइ तो तेसिं अगारहत्थाणं अप्पत्तिया भवइ तेणयसंकणादिदोसा, अह दूर तो न दीसह एसणाघाओ य भवइ, तम्हा कुलस्स भूमी जाणित्ता पाइरे णासणे ठाइ-IM यच्वं । उदएत्ति जहा वाणियएण छ रयणाणि सुंडियाणि दिसाए गंतुं, सो य ताणि ण सकइ नित्थारेउं चोरभया , ताहे सो ठयेऊण ताणि एगमि पएसे अण्णे जरपाहाणे घेतं पडिओ गहिरूलवेसेण, रयणवाणियउ गच्छतित्ति भाविए तिमि बारे जा कोइन। उद्वेइ ताहे घेत्तुं पयाओ, अडवीए तिसाय गहिओ जाव कुहियपाणिययं खिल्लरं विणटुं पासइ, तत्थ बहवे हरिणादओ मया, तेणं सव्वं उदगं वसा जाता, तं तेण अणुस्सासियाए अणस्सादंतेणं पीतं, णिस्थारियाणि अणेण रयणाणि, एत्थं तु रयणस्थाणियाणि णाणदसणचरिचाणि, चोरस्थाणिया विसया, कुहिओदगत्थाणियाणि फासुगेसणिज्जाणि अंतपंताणि आहारेयब्याणि, आहारितेणं साहारेंतपुप्फफलेण जहा वाणियगो इह भवे सुहीजातो एवं साधूवि सुही भविस्सइ अडवित्थाणीयं संसारं नित्थरिता ।। गर्य चेयं नाम । दुमपुफियत्ति, गतो नामनिष्फण्णो। इदाणि मुत्तालावगणिप्फण्णो, सो पत्तलक्षणोऽविण निक्खिप्पति, कम्हा?, जम्हा ४ अस्थि इतो तइयं अणुयोगदारं अणुगमोचि, तम्हा तहिं चेव णिक्खिाविस्सामि, तहिं निक्खिप्पमाणे लहुगं भवइ, सीसस दीप अनुक्रम R5% [26]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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