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________________ आगम (४२) भाग-6 “दशवैकालिक"- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [१], उद्देशक [-1, मूलं -1/[गाथा:], नियुक्ति: [३४/३४-३७], भाष्यं [-] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत SINIब्दाः सूत्राक दीप श्रीदश- रिसेत्ति वा वत्ति वा अक्खेति वा उसुत्ति वा गोलेति वा पुत्तेनिषा उदएचिवा एतेहिं उवम्म कीरइत्तिकाउं ताणि भण्णति नामाणि अध्ययनैवकालिका तस्स अज्झयणस्स, दुमपुफियत्ति जहा भमरो दुमपुप्फेहितो अकयमकारिय पुष्फ अकिलामेन्तो आहारेति, एवं अकयमकारियंटू काथा' चूणा निरुवधं गिहत्थाणं अपीलयं आहार गेहइ । आहारएसणत्ति एगग्गहणे तज्जातीयग्गहणं उम्गमादिसुद्धं अरचढेण आहारे१ अध्ययन यचं, गोयरेत्ति जहा सो बच्छओ तमि सेट्टिकुले ताए बहुगाए सब्बालंकारविभूसियाए उ चारि दिज्जमाणं पलोएड, सहादीसु। ॥ १२ ॥लन रत्ते दुट्टो वा, एवं भिक्षुणा हिडतेणं सद्दादीसु इटाणिट्ठविसएमु न रज्जियन्वं न य दुस्सियव्यंति। तदेति जहा चत्तारि घुणाल पण्णत्ता, तंजहा-तयक्खाए छल्लिक्खाए कट्ठक्खाए सारक्खाए, तयक्खाए नामेगे णो सारक्खायी १ सारक्खाइ णामेगे णो तयाखायी २ एगे तयखायीधि सारक्खायीवि ३ एगे णो तयक्खायी णो सारक्खायी ४, तयक्खायीसमाणस्स णं भिक्खुस्स सारक्खायी। समाणे तवे भवइ, एवं जहा ठाणे तहेव । उंछोत्ति दारं, ते चउम्विहं, णागठवणाउ तहेब, दग्छ जहा केइ तावसादी उंछति, भाषाला | अण्णायपिंडो । मेसुत्तिदारं, जहा मेसो अणायुगाणितो पिचेति एवं साहुणावि भिक्षापविद्वेण बीयकमणादि ण तहा हल्लफ लयं काय जहा भिक्खाए दाया मूढो भवइ, सो वा तेण वारेयव्यो जेण परिहरइ । जलूगा, एत्थ चेव समोयारेयचो, भणियं चन | दर्शस्तीक्ष्णनिपातन्धमायाति चात्मनः । जलूकापि तदेवार्थ, माइवेनोपसप्पंति ॥ १॥ एवमणेसणाए, ण जहा मसओ दुक्वं | उप्पाइचा रुधिरं पियति, एवं णिवारेइ जहा तस्स दायगस्स मणो दह न भवति, जलोगा व निवारणीयं पसण्णमणसणं । ॥१२॥ दासप्पोत्ति जहा सप्पो सरति बिले पविसति तहा साहुणावि अणासादतेण हणुय असंसरतणं आहारयव्यं, अहवा जहा सप्पो एगदिदी तहा णिग्गथे पक्यणे एगदिविणा होयम् । वणेत्ति जहा वणस्स मा फुट्टिहिति तो से मक्खणं दिज्जद, एवं इमस्सविx अनुक्रम 550 [25]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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