SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४२) भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [५], उद्देशक [२], मूलं [१५...] / गाथा: [५१-२०९/१७६-२२५), नियुक्ति : [२४४.../२४४...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक श्रीदश [१५...] गाथा ||१६०२०९|| पावइ, परलोगऽपि सो अणालोइयपडिक्कतो कालगओ देवकिब्विासियत्ताए कम्मं पकरेति । सीसो श्राह-जइ तारिसेहिं देव की उद्देशः२ बैंकालिक लम्भइ, किमेवढेण जवेण?, भण्णाइ-तारिसस्स बभवयाइयाण पालणादाणं तं फलं, तहवित्थ असाहणं । अतः- लणवि देवत्तं ।। चुणौG|| २०६ ॥ सिलोगो, किं तेण देवत्तेण जत्थ सो ओहिनाणलद्धीए न जाणइ-कोई पुब्वं आसी? किं वा कयंति', अहवा सो त ५ अ01इमे न याणइ-जहा इमं दुक्कडं कयं जेणाहं देवत्तणेवि सति आभियोगो अंतत्थो वा जातोति, एस ताव देवलोगे अबायो भाणि ओ । इदाणिं ताओ देवलोगाओ चुतस्स भण्णाइ-'तत्तोऽपि से चइत्ताण' ॥२०८॥ सिलोगो, जइवि कहषि सो तओ ॥२०॥ चबचा देवलोगाओ माणुस्सेसु उपयज्जइ जत्थ बहुणावि कालेण बोधिलाभो न भवति । 'एअंच दोसं दहणं, नायपुत्तेण| भासि ॥ २०८॥ सिलोगो, एवं नाम जो हेटा इयाणि देवकिदिवसादि दोसो भणिओ. एवं दद्रण, चकारेण सूलचति । IXI जहा कित्तियं भणिहामि, अण्णवि भगवया णायपुत्तेण एत्थ बहवे दोसा भासिया, तम्हा तेसि दौसाणं परिहरणनिमित्तई अणुमायपि मेहाची, मायामोस विषज्जए' तत्थ अणुसद्दो थोचे वट्टइ, थोषमवि मायामोसं विवज्जए, किमंग पुण बहुमंति PIPI इदाणि दोण्हंपि उद्देसगाणं उपसंहारो कीरइ, जहा--सिक्खिऊण भिक्खेसणसोहि ॥२०९॥ सिलोगो, सिक्खिऊण-11 णाऊणं, भिक्खाए एसणा भिक्खेसणा, भिक्खमग्गणत्ति वुत्तं भवति, ताए भिक्खाए उम्गमुप्पायणेसणादीहिं सिक्खिऊण संजताई साधुणो भण्णन्ति बुद्धा नाम अरहंतो भगवतो, तेसिं संजतषुद्धाणं सगासे पिंडेसणज्झयणं सिक्खिऊणं 'तत्थ' त्ति ताए भिक्खेस- २० 18| णसुद्धीए साहुणो 'सुप्पणिहिदिए तिब्बलज्जेण गुणवया विहरियब्वंसुट्ठ पणिहिताणि इंदियाणि जस्स सो सुप्पणिहि-18 इदिओ, लज्जसंजमो-तिब्बसंजमो, तिव्यसदो पकरिसे वह, उकिट्ठो संजमो जस्स सो तिब्बलज्जो भण्णइ, गुणो जस्स अस्थि सो दीप अनुक्रम [१७६२२५] % 94 [218]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy