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________________ आगम (४२) भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [५], उद्देशक [२], मूलं [१५...] / गाथा: [५१-२०९/१७६-२२५), नियुक्ति : [२४४.../२४४...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक उद्देशः२ [१५...] गाथा ||१६०२०९|| श्रीदश- | भदगं भोत्तर्ण विषण्णविरसाणि आहरह', 'जाणतु ता इमे ॥१९३।। सिलोगो, जाणतु ता इमे समणा जहा एस साथ् आयबकालिका तो-मोक्खो भण्णाइतं आयय अस्थयतीति आययद्री. अहोऽयं सतहो नाम जह अस्थि तो झुंजति, अलम्ममाणेऽवि समो चेव, चूर्णी. अहो य अंतपंतं निसेचइ, लूहाइ से वित्ती, एतस्स ण णिहारे गिद्धी अत्थि, 'सुतीसओ' नाम थोवेणवि आहारण लद्धेण ण चव ५ अ० आउलीभवति । किंच-'पूअणट्ठा जसो० ॥ १९४ ॥ सिलोगो, सो पच्छन्नभाई पूयणढी जसोकामी य इमं महंत अवार्य ॥२०२॥ पावह, तत्थ पूयणड्डी जहा जइ अहमेव करेमि वो सपक्खपरपक्खओ मे पूया भविस्सइ, 'जसोकामी' नाम एवं कुबमाणस्स जसा म भविस्सइ, जहा अहो महप्पा एसत्ति, एवमादी, 'माणसम्माणकामए' माणा बंदणअमुहाणपच्चयी, सम्माणा ताह बंदणादीहि पत्थपत्तादीहि य, अहवा माणो एगदेसे कीरइ, सम्माणो पुण सच्चप्पगारेहि पति, माण सम्माण कामयताति माना समाणकामए, कामयति नाम पत्थयति, सो एवंविहसहावो बहुं "विविह' अणेगपगारं पापं पसवति, पसवति नाम प्रसूययति, कम्मगरुययाए वा सो लज्जाए वा अणालोएंतो मायासल्लमवि कुब्बति । कई , 'सुरं वा मेरगं वाबि० ॥ १९५ ।। सिलोगो, तित्थ सुर पिट्ठकम्मादि दव्यसंजोगओ भवति, मेरगो पसनो मुरापायोग्गेहि दहि कीरह, ण केवलं सुरमेरमा परिहारयच्या, है किन्तु अण्णावि जे मज्जप्पगारा तेवि परिहरणिज्जति, जति नाम गिलाणनिमित्ताए कज्जं भविज्जा ताहे 'ससक्खं नो पिबेज्जा' ससक्खं नाम सागारिएहि पटुप्पाइयमाणं, किं कारणं ससक्खं ण पिबेज्जा, मण्णति- 'जसं सारक्षमप्पणों' Cजसो संजमो भण्णा कित्ती वा, तेण य पीएण मत्तो भवति, मनोय संजमणो पेक्खड़। इयाणि ससक्खं ण पायन, एगागिणी पायब्वमिति', अतो भण्णति--'पियए एगओ तेणो० ॥ १९६ ॥ सिलोगो, पियति नाम पियतित्ति वा आपियति वा एगढ्ढा, दीप अनुक्रम [१७६२२५] MALSCREGAROOPEECACK ॥२०२।। [215]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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