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________________ आगम (४२) भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [५], उद्देशक [२], मूलं [१५...] / गाथा: [५१-२०९/१७६-२२५), नियुक्ति : [२४४.../२४४...], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक उद्देशः २ चूर्णी [१५...] गाथा ||१६०२०९|| श्रीदश-हैणणु एस अत्थो पुचि चेव मणिओ जहा 'सम्ममाणी पाणाणि बीयाणि हरियाईति हरियग्गहमेण चणफई गहिया, किमत्थं. बैंकालिक पुणो गहणं कयंति !, आयरिओ भणह-तत्थ अविससिय वणकरगहणं कयं रह प्रण सभेदभिण्णं वणप्फाकायचच्चारियं, जं | जहा अकप्पियं भवति तं तहा इमा पडिसेहेह, तहा 'उप्पलं पउमं वावि ॥ १७५ ॥ सिलोगो, सम्मदिया नाम पुन्वच्छि-16 ५ अ० प्रणाणि जाणि ताणि अपरिणयाणि संमहणसंघट्टणाणि काऊण देइ, तमेवपगारं दितिय पडियाइक्खे-न में कप्पड सारिस । किंच ॥१९॥ जहा उप्पलादीणि सत्ताणि परिवज्जिजति तहा इमाणिविसालों बा चिरालियं० ॥ १७ ॥ सिलोगो, 'सालुग' नाम | उप्पलकन्दो भण्णइ, 'बिरालिय' नाम पलासकंदो मण्णइ, जहा बीए वस्सी जायंति, तीसे पत्ते, पत्ते कंदा जावंति, सा विसलिया | भण्णाइ, कुमुदा उप्पला व पुष्वणिया, तेसिं दोण्हवि जाली-गालिया भण्णइ, एयाणि लोगो खायति अतो पडिसेहणनिमिच। ४ोनालियागहणं कयंति, मुणालिया गयदंतसचिमा पउमिणिकंदाओ निग्गच्छति, 'सासवनालिअं' सिद्धत्थगणालो, तमवि | लोगो ऊणसतिकाऊण आमग चव खायति, उच्छृखंडमवि पब्बेसु धरमाणेसु ता नेव अनवगतजीव कप्पड़ । किंच-तरुणगं वा पाल' ॥१७८ सिलोगो, 'तरुणगं' नाम अहणुट्टियं 'पवाल' पल्लयो, सो रुक्खस्स वा हरियस्स वा होज्जा, रुक्खे जहा। अघिलयाईणे, तणस्स जहा अज्जगमूलादीणं, आमग नाम सचित्तं,परिवज्जए (परितो) वज्जए परिवज्जए। 'तरुणिअंधा छिवार्डि' I ॥१७९॥ सिलोगो, 'तरुणिया' नाम कोमलिया, 'छिवाडी' नाम संगा, 'आमिया' नाम सचेतणा, 'सई मज्जिया' नाम 181 एकसि मज्जिपा, ते तहप्पगारं छियाडि देतियं पडियाइक्खे। किंच-तहा कोलमणुस्सिन'० ॥ १८० ॥ सिलोगो, कोल जर मण्णाह, अण्णे पुण भणति-सकिरिल्लो वेलुयं, तमवि अणुस्सिन कप्पइ, 'कासवनालिय' सीयणिफलं मण्णइ, तमीवर दीप अनुक्रम [१७६२२५] SECORNERIES ॥१९७) ॐॐ3 [210]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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