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________________ आगम (४२) प्रत सूत्रांक [१५...] गाथा ॥६० १५९|| दीप अनुक्रम [७६ १७५] 1 भाग-6 “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः + भाष्य|+चूर्णिः) अध्ययनं [५], उद्देशक [१], मूलं [१५...] / गाथा: [६०-१५९/७६-१७५], निर्युक्तिः [२२०-२३४ / २३४-२४४], भाष्यं [६१-६२] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४२] मूलसूत्र- [०३] दशवैकालिक निर्युक्तिः एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि श्रीदशवैकालिक चूणों ५ अ० ॥१६५॥ उद्देशक - १ एते ताव मूलगुणा भणिया इदाणि उत्तरगुणा भण्णंति एतेणाभिसंबंघेणागतस्स पंचमज्झयणस्स चत्तारि अणुओगदारा भाणिया, जहा आवस्सए, नवरं इहं नामनिष्फष्ण भण्ण-नाम उवणापिंडो दब्वपिंडो य भावपिंडो य गाथा, णामनिष्फण्णे पिंडनिज्जुती भाणियच्या, सा य सख्यावि नवहिं कोडीहिं समोयरह, सं०-ण हणइ ण हणावे हणतं नागुजाणइ ण पयति ण पयावेइ पर्यंतं नाणुजाण न किणइ न किणावेद किर्णतं नाणुजाण, एत्थ गाथा 'कोडीकरणं ' गाथा ( ६२-१६१ मा० ) एता नवकोडीओ दुहा कीरंति-उग्गमकोडी य विशुद्धिकोडा य, तत्थ उग्गमकोडी नाम अविसोहिकोडी, तत्थ जा सा उगमकोडी सा छव्विहा, तं० आहाकम्मं पढमा अगमकोडी, उद्देसिया पाखंड समणनिरगाण य कम्मं समोयर बितिया उग्गमकोडी, पूती कम्मं भत्तपाणपूतियं ततिया, भीसजाए घरमीसपाखंडाणं चउत्था, बादरपाहुडियाए पंचमी, अज्झोयरए छड्डा, एसा छब्बिहा अविसोधिकोडी, सेसा विसोधिकोडी, तत्थ जा सा अविसोधिकोडी या न हणइ न हणावेइ हणत नाणुजाणइ न पयति न पयावेइ पर्यतं नाणुजाणइ न पर्यति एतेसु समोयर, 'नव चैवहारस ' गाहा (२६०५-१६१) नव कोडीओ दोहिं रागदोसेहिं गुणिया अट्ठारस भवंति, ताओ चैव नव तिहि मिच्छत्ताण्णाण अविरती हिं गुणियाओ सत्तावीस भयंति, सत्तावीसा दोहिं रागदोसेहिं गुणियाओ चउप्पण्णा भवंति, ताओ चैव नव दसविषेण धम्मेण गुणियाओ विसुद्धाओ नउई भवंति सा नउई तिहिं नाणदंसणचरितेहिं गुणिया दो सत्तरा भवति, गओ नामनिष्कण्णो निक्खेवो, सुत्तागुगमे सुत्तमुच्चारयण्वं अक्खलियं अमिलियं अविच्चामेलियं जहा अणुयोगदारे, तं च सुतं इम संपत्ते भिक्खुकाम असंभंतो अमुच्छिओ। इमेणं कम्मजोगेण, भत्तपाणं गवेसए (६०-१६३) 'आपल व्याप्ती' अध्ययनं -५- 'पिंडैषणा' आरभ्यते [178] पिण्डस्वरूपं ॥१६५॥
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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