SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४२) भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य|+चूर्णि:) अध्ययनं [४], उद्देशक H. मूलं [१-१५] / गाथा: [३२-५९/४७-७५], नियुक्ति: [२२०-२३४/२१६-२३३], भाष्यं [५-६०] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक [१-१५] गाथा ||३२५९|| वैकालिक चूणों १ अ० ॥१५१॥ मेहुणं सेवेज्जा, तत्थ दोससमुत्थो रागो, रागो पुण णियमा अत्थि, तं च मेहुणं दवओ सेवेज्जा णो भावओ, पढमो मंगो | मेहुणे णस्थि, कि कारणं, जेण भायेण विणा तस्स संभवो नत्थि, भणियं च- "कामं सब्बपदेसुवि उस्सग्गववायधम्मया विरमणं | दिट्ठा। मोतु मेहुणभाष ण विणा सो रागदोसेहि ॥१॥" अण्णे पुण आयरिआ भणति, जहा इत्थियाए अकामियाए पुरिसेण । सेविज्जमाणीए दवओ मेहुणं णो भावओ भवइ, सत्य जे से भावओ ण दव्यओ सो मेहणसत्रापरिणयस्स असंपत्तीए लब्मतिचि, दब्बओवि भावओवि मेहुणसभापरिणयस्स मेहुणसंपत्तीए भवद, चउत्थों भगो सुष्णो, सीसो आह-मेहुणे को दोसो ?, आयरिओ भणइ--बिम्भमुम्भन्तचित्तयस्स पकिनिदियस्स ताव सुहं चेव णिच्छययो णत्थि, रागद्दोसा य तमि अवस्समेव उदिजंति, ते य रागदोसा संसारहेउणो भणिया, अतो सवपयचेण तं बजेगवंति, 'चउत्थे भंते! महव्वए उवडिओ मि | सव्वाओ मेहुणाओ बेरमणं'। • अहावरे पंचमे भंते ! महव्वए परिग्गहाओ वेरमणं (७-१४८ ) एतस्सवि महन्वयस्स जो विसेसो सो भण्णइ, सेस नहेब जहा पाणाइवायवेरमणे, सो य परिग्गहो चेयणाचेयणेसु दब्बेसु मुच्छानिमिचो भवइ, से गामे वा इति एतेण खेत्तगहणं कयं, अप्पं वा एवमादिग्गहणेणं एगग्गहणे गहर्ष तज्जातीयाणमितिकाउँ कालभावावि गहिया,इदाणि एसो चउम्विहोवि परिग्गही वित्थरओ भण्णइ-दब्बओ खेत्तओ कालओ भावओ, तत्थ दबओ सम्बदन्वेदि, मुत्ताणऽमुत्ताण य समुदायो लोगो भवइ, तंपि अनियत्ततह-11॥१५॥ चणेण पत्थयति, खेत्तओ सबलोगे, सब लोग ममायति, (कालओ दिया वा राओ वा) भावओ अप्पग्छ वा महग्धं वा ममाएज्जा, सो य परिग्गहो कस्सइ दन्यओ होज्जा णो भावओ १ कस्सइ भावओ णो दलो २ कस्सइ भावओबि दबओपि ३ करसह न || दीप अनुक्रम [३२-७५] ... पंचमं महाव्रतस्य निरूपणं [164]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy