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________________ आगम (४२) प्रत सूत्रांक H गाथा ||१७ ३१|| दीप अनुक्रम [१७-३१] भाग-6 “दशवैकालिक”- मूलसूत्र - ३ (निर्युक्तिः + भाष्य |+चूर्णिः) अध्ययनं [३], उद्देशक [-] मूलं [-] / गाथा: [१७-३१/१७-३१], निर्युक्तिः [१८०-२१७/१७८-२१५], भाष्यं [४...] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४२] मूलसूत्र- [०३] दशवैकालिक निर्युक्तिः एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि श्रीदशवैकालिक चूर्णों ३ अध्ययने ॥१०९॥ दुच्चिष्णा कम्मा इहलोगे दुहविवागसंजुत्ता भवंति कह १, जहा पावपसत्तिमेतो बालप भितिमेव अंतकुलेसु उप्पण्णा विययकोढाईहिं रोगेहिं दारिद्देण य अभिभूया दीसंति, एसा तया निव्वेयणी ॥ इयाणि उत्था णिब्बेदणी, परलोए दुच्छिष्णा कम्मा परलोए चैव दुहविवागसंजुत्ता भवंति कहूं ?, जहा पृथ्वि दुच्चिष्णेहिं कम्मेहिं जीवा संडास तुंडेहिं उप्पज्जेति तओ ते नरयपाउग्गाणि कम्माणि असंपुष्णाणि ताए जातीए पूरेति, पूरेऊण नरगभवे वेदेति, एसा चउत्थी णिव्वेदणी ॥ एत्थं इहलोगो वा पर लोगो वा पण्णवगं पटुच्च भवति, तत्थे पण्णवगस्स मणुस्सभवो इइलोगो, अबसेसाओ तिष्णि पगडीओ पर लोगो, एताए निव्वेयणीए कहाए इमा रसगाहा- 'पावाणं कम्माणं' गाहा ( २०३-११० ) पढिया, चउण्डं कहाणं कस्स का पढमं कहेयव्वाः, एत्थ भष्णइ-वेणइय णइगस्स कहा वेयणियगो नाम जो पढमताए उबट्ठाइ ममं धम्मं कहेह, तस्स अक्खेवणी कहेयच्चा, तो ससमयगहियस्स पच्छा विक्खेवणी कहिज्जेह, किं कारणं १, जम्हा अक्खवणीए जीवा अक्खित्ता समाणा सम्मतं लभेज्जा, विक्खेवणीए पुण भयणिज्जा, गाढतरागं च मिच्छतं भवह, कई ?, जो आगाढमिच्छदिट्ठी तस्स ससमयो वणिज्जंतो रोयह, गाढावगयत्तणेण पुण तस्स दोसा कहिज्जमाना ण रोयंति, ण य सहहह, सुहुमत्तणेण ग दोसे अबुज्झमाणो अदोसे देव मण्णज्जा, इच्चेएण कारण भष्णति जहा गाढतरागं मिच्छेति, धम्म कहा सम्मता || इवाणि मीसिया कहा भण्णइ 'लोइयवेइय'० गाहा (२०८-११४) लोहयोइयसामइएस सत्थेसु जहिं धम्मत्यकामा तिष्णवि कहिज्जंति सा मीसिया कहा, तत्थ लोइएसु जहा भारहरामायणादिसु वेदिगेसु जन्नकिरियादीसु सामइमेसु तरंगवहगाइस धम्मत्थकामसहिताओ कहाओ कहिज्जेति मीसिया कहा संमत्ता । इदाणिं कहाप्रसंगेण चैव चिकहा- भराइ- जहा विणट्ट ... अत्र मिश्रकथा एवं विकथायाः स्वरुपम् वर्णयते [122] धर्मकथा ॥१०९॥
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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