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________________ आगम (४२) भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य|+चूर्णि:) अध्ययनं [३], उद्देशक , मूलं H / गाथा: [१७-३१/१७-३१], नियुक्ति : [१८०-२१७/१७८-२१५], भाष्यं [४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक गाथा ||१७३१|| श्रीदश- एवं चेव, णवरं पुवि सोमणे कहेइ पच्छा इयरेनि, एवं विखेवणी गया ।। इयाणि इहलोगसंवयणी, जहा सव्वमेव धर्मकथा बैकालिक माणुसत्तण असारमधर्व कदलीथंभसमाण परिसं कह कहेमाणो धम्मकही सोतारस्स संवेगमुप्पाएइ,इहलोगसंवेयणी गताइवाणिं चूणों परलोगसंवेदणी,जहा इस्साविसादमदकोहमाणलोभादिएहिं दोसेहि। देवावि समभिभूया,तेसुचि कत्तो सुई आत्थि॥१॥इट्ठ जणधिप्प३ अध्ययन ओगो चेव चयं चेप देवलोगाउाएतारिसा णिसग्गे देवावि दुहाणि पावंति।शाजइ देवेसु एयारिसाई दुक्खाई पाविति नरगतिरिएसु पुण ॥१०॥ का कहा?, एसा परलोगसंवेदणी कहा गया। इदाणि सुभाण कम्माण विवागदरिसावणेणं संवेग सोयारस्स उप्पाएइ, जह इहलोएवि तेयाइओ लद्धाओ भवति सुभेसु कम्मसु वट्टमाणस्स,तं. 'बीरिय विउब्बण' गाहा(२०२-११०)तबोजुत्तस्स साहुणो आगासगमणादीवीरियमुप्पज्जति जंघाचारणलद्धी विज्जाचारणलद्धी वा एवमादी, तहा विउवणलद्धीवि तवसामत्येण भवति, गाणड्डी इह लोए भवइ, भणिय च-'पभू भंते ! चोदसपुग्वी घडाओ घडमहस्सं विउव्बित्तए' एवमादी, तहा चरणद्धीवि जहा 'ज अनाणी कम्म खवेह पहुयाहि वासकोडीहिं । तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उस्सासमेत्तेण ॥ १॥ देसणिद्धी जहा-'सम्मदिड्डी जीवो विमाणविज्ज न बैधए आउं । जइ य न सम्मत्तजढो अहव न बद्धाउओ पुचि ॥१एवमादीयाओ कहाओ कहेंतो संवेगणि कह Iकतित्ति,संवेगणी कहा गया । इदाणि णिव्वेयणी, सा चउबिहा-त-इहलोए दुरिचण्णा कम्मा इहलोए दुहविवागूसंजुत्ता भवति, चउभंगी, पर इह लोए दुश्चिण्णा कम्मा इहलोए दुहविवागसंजुत्ता भवंति , जहा चोराणं परदारियाणं, एबमाई, एसा पढमा निब्वेदणी गता।। इदाणि वितिया णिब्वेदणी, इहलोए दुच्चिण्णा कम्मा परलोए दुहविवागसंजुत्ता भवंति, जहा १०८॥ IMणेरइयाणं अण्णमि कर्य कर्म निरयमये फलं देह, एसा पितिया निब्बेयणीकहा, याणिं तइया णिब्वेदणी कहा--परलोगे2 दीप अनुक्रम [१७-३१] [121]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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