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आगम
(४२)
भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य|+चूर्णि:) अध्ययनं [३], उद्देशक H, मूलं H / गाथा: [१७-३१/१७-३१], नियुक्ति : [१८०-२१७/१७८-२१५], भाष्यं [४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि
प्रत
सूत्रांक
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गाथा
||१७३१||
श्रीदश-14 कोइ सोतारो सुहुमाए दवचिताए वा सोउमरिहे ताहे तस्स सोयारस्स मती वादेहि अक्सिप्पड़, जेण वा दिविवाएण हेउणा-धर्मकथा वैकालिका अक्षिप्पड़ सा य दिठिवायक्खेवणी, एसा अक्खेवणी कहा, तारिसेण अण्णण वियप्पेणं इमाए गाहाए भण्णति 'विज्जा चरण
चूर्णी चितबो' गाहा, (१९७-११०) तत्थ नाणस्स सामत्थं कहयइ, जहा अंधगारे बरमाणा भावा पदीवेण सचक्खू पासइ, एवं ३ अध्ययने । नाणं पुरिसस्स दीवभूतति, भणियं च--'पेच्छइ जहा सचक्खू पुरिसो दीवेण अंधयारेवि । जिणसासणदीवण उ पासति (नाणी
सयल भावे) ॥१॥" एवं गाणसमत्थदीवएण सोयारस मती अक्खिप्पड़, एसा विज्जाअम्वेवणी गया ॥ इदाणिं ॥१०॥
दाचरणअक्वेवणी २ णाम एवं साहुणो सरीरवि अपडिबद्धा भवंति, (साहुणो छडमदसमदुवालसाई तबो जीए वणिज्जइ)
चरणअखेवणी २ णाम एवं माहो PIपुरिसगारो णाम अणिमूहियबलवीरिएहिं संजमजोगो कायच्चो, समितीओ पंच गुत्तीओ तिण्णि, एमाओ विज्जाचरणाणि पुरिस-11
कारसमितीगुत्तीपज्जवसाणाणि पंचवि कारणाणि जाए कहाए उवदिस्संति सो कहाए अक्खेवणीए रसोत्ति, रसो नाम लक्षणं भण्यते, एवं अक्स्वेचणी कहा गता ॥ इदाणि विक्वेवणी, सा चउम्विहा, तं०- ससमयं कहेता परसमयं कहेइ परसमय
कहेता ससमयं कहेह (पढमा विखेविणी, सम्मावादं कहेता गुणे य से उवदंसेइ (मिच्छावायं कहेता दोसे य तस्स उवदसेइ) द एसा वितिया विक्खेवणी गया, इदाणि तइया विक्खेवणी भण्णति, परसमयं कहेचा तेसु चेव परसमएसु जे भाषा जिणप्पणी
तेहिं भावेहि सह विरुद्धा असंता चेव वियप्पा ते पुचि कहेत्ता दोसाइ तेसि भणिऊण पुणो जिणप्पणीयभावसरिसा घुणक्खरमिव केवि सोहणा भणिया ते कहेइ, अह्वा मिच्छावादो नत्थितं भण्णइ,सम्मावादो अस्थित्वं भणति तत्थ पुब्बि नाहियवाईणं दिडीओ कहित्ता पच्छा अस्थित्तपत्रवाईणं दिडीओ कहेइ, एसा तइया विक्खेवणी गया, इयाणि चउत्थी विस्खेवणी, सावि
दीप अनुक्रम [१७-३१]
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