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आगम
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भाग-4 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 2 अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2
प्रत सूत्रांक
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दीप अनुक्रम [१]
नमस्कार एत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥१।। एवं णाऊणं रयणाई मग्गिऊणं गोट्ठागाराणि सालीणं मरियाणि रयणाई गद्दमियादीणि पुच्छितो परिणामि
है की व्याख्यायां | छिण्णाणि २ जायंति, आसा एगदिवसजाता मग्गिता, एगदिवासियं णवणीतं मग्गितं । एस परिणामिता चाणकस्स बुद्धी ।। ॥५६६॥ &
___थूलभहस्स सामिस्स परिणामिता, पितुमि मरिते कुमारो भष्णति-अमच्चो होहिति, सो असोगवणियाए चिंतेति-केरिसा | भोगा वाउलाणंति?, ताहे पब्वइतो, राया भणति-पेच्छह, मा कवडेणं गणियाघरं जाएज्जा, जिंतस्स सुणगमडगो बावण्णो, णास | न विकूणेति, पडिलेहेता रण्णा भणित-विरत्तभोगोत्ति, सिरिओ ठाविओ।
णासिकणगर, दो वाणियओ, सुंदरी से भज्जा, सुंदरीणंदो से नामं जातं, तस्स भाता पुवपब्वइतो, सो सुणेति-जथा RI डातीए अझोवपनो, पाहुणओ आगतो, पडिलामितो; भाण तेण गाहित, एहि एत्थ विसज्जेहितित्ति उज्जाणे णीतो, सो भोगगिद्धो सणगरं जाहितित्ति अधिगतरेणं उवप्पलोभेमि, सो य चेउब्धियलद्धी, मकडिं दरिसेत्ता पुच्छति-का सुंदरिचि?, सुंदरी, पच्छा विज्जा
धरीए, तुल्ला, पच्छा देवीए, देवी अतिसुंदरत्ति, पुच्छितो मणति-कहं एसा लब्मतित्तिा, धम्मणचि पम्पहतो । साधुस्स पारिणामिका।* का बहरसामिस्स परिणामिया, माता णाणुबचिया, मा संघो अवमाणिहितित्ति, पुणो देवेहिं उज्जेणीए वेउब्वियलद्धी दिना, IF पाइलिपुते मा परिभविहित्ति बेउब्वियं कयं, पुरियाए पवयणओभावणा मा होहितित्ति सथ्य कहियव्वं ।।। IMI चलणाहणणे, राया तरुणेहिं घुग्गाहिज्जति, जथा थेरा कुमारा य अवणिज्जतुत्ति, सो तेसि मतिपरिक्खणणिमित्तं भणति
जो रायं सीसे पाएण आहणति तस्स को दंडो, तरुणा भणीत-तिलतिल छिदियचओ, थेरा पुच्छिया, चितमोत्ति ओसरिया,
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