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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
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दीप अनुक्रम
[8]
भाग-4 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 2 मूल [१] / [ गाथा-], निर्युक्ति: [ ९४९ - ९५१ / ९४९-९५१],
भाष्यं [ १५१...]
अध्ययनं [],
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि -2
नमस्कार व्याख्यायां
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पीते पुतो जातो, संबद्धति, इमोऽवि धातुविला मग्गति, सो य दारयहिं समं रमति, रायगीती विभासा, चाणको य पडिएड, पेच्छति, तेग त्रिमरितो, अम्हवि दिज्जनु, भगति -गावीओ लहेहि, मा मारेज्ज कोति, भगति - वीरभोज्जा पुहवी, जातं जथा विष्णाण से अस्थि, तो करसति दारएहिं कहि पनि एस अहं परिवाओ, जानु जा ते रायाणं करोमि, चलिया, लोगो मिलितो, पाडलिने रोहित गंगे भयो परिव्वायगो हि पुडित लगो, चंदवा य पमसरे गिबुडो, इमो उपस्पृशति, सण्णाए भगति--बोलियति, उत्चिण्णा णासंति, अग्गे भगति चंद उभिणीसंडे छुमिचा रखओ जातो, पच्छा एगेग जच्चकिसेोरगगतेण आसवारेग पुच्छितो भगति -एस पउनसरे पचिट्ठो, ततो ते दिडो, ततो घोडगो चाणकस्स अलिचिओ, तत्थेव खग्गे मुर्क, जले पसगवाए कंचु मुवति तच खमोण दुहाकतो, चंद्रगुतो वाहिता चडावितो, पछाषा, पुच्छितो कि तुमे चिंतितंति ?, भगति धुवं एवं चैव सोभर्ग, अज्जो चैव जागतित्ति, जातो जागो, ण एवं विपरिगमतित्ति, पच्छा छुट्टाइओ चागको तं वेत्ता अतिगतो, वीमतिमा एत्थं ज्जेज्जामोति माह बाद निश्वस्त पोई फालिने, दधिकरं गाय गतो, जिमितो, अगत्थगामे रति समुदाणंति, थेरिय पुत्त मंडाणं बिलेवितं देति उहे एकेग मझे हत्थो छूडो, दड्डी रोवति, ताएय भण्गतिचाणक मंगलोस, पुच्छि भगति पासाण पढने घेवंति, गजा हिमत, पचओ राय, ते समं मितया जाता, भगति सभ समेग विभयामो रज्जे, ओतप्रेन्वानं एगस्थ नगरं पण पडत, पवितिदंडी, वत्थूणि जोएति, इंदकुमारियाओ, तासि तगरगण पडति, माताएं जीवविताओ, पडित नगरं पाडलिपुतं रोहित, मंदो धम्मवारे मग्गति, एंगेण रहेग जं तरसि तं गीणेहि, दो भज्जातो एगा कण्णा दव्वं च गीणेति कण्णा चंदनं पलोएति, मणिता जाहिति, ताए विलमंत्री चंद्रगुप्तस्स रहे णत्र अरगा
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परिणामि की बुद्धिः
॥५६४॥