________________
आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
H
दीप
अनुक्रम
H
भाग-4 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) 2
भाष्यं [ ११४... ]
अध्ययनं [-]
मूलं [- /गाथा-], निर्युक्तिः [५२०-५२१/५२०-५२१]
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र - [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2
श्री
आवश्यक
चूण
उपोदूधात
नियुक्त
॥३१८ ॥
बहवे अभिग्गहा, ण णज्जति अभिष्याओ दव्वजुत्ते य खे० सत्त पिंडेसणाओ सत्त पाणेसणाओ, ताहे रमा सम्वत्थ संदिडा, | लोगेणवि परलोककंखिणा कता, सामी आगतो, ण य तेहिं पगारेहिं गिण्हति, एवं च ताव एवं। इओ य सयाणिओ पं पधाविओ दहिवाहणं गेण्डामिति, णावाकडएण गतो एगाए रत्तीए, अचिंतिया चेव णगरी बेडिया, तत्थ दहिवाहणो पलातो, रत्ना जग्गहो घोसित एवं जग्गहे दिने दहिवाहणस्स रनो धारणी देवी, तीसे धूया वसुमती, सा सह धूयाए एगेण ओडिएण गहिता, राया नियत्तो, सो उट्टितो चिंतेति, भणइ य-एस मे मज्जा, इमं च दारियं विक्केसं सा देवी तेण मणोमाणसिएण दुक्खएण अप्पणी धूयाए य एस ण णज्जति किं ममं पावेहिति, एवं चीड, एवं सा सा अंतरा कालगता, पच्छा तस्स उट्टियस्स चिंता जाता-दुई मए भणितं महिला हाहितिचि, एवं न भणामि, मा एसावि मरिहिति, तो मे मोल्लंपि ण होहिति, ताहे यसंवेण आणिीता, वीडीए ओडिया, घणवाहेण दिट्ठा अणलंकितलावचा, अवस्सं रन्नो ईसरस्स या एसा, मा आवई पावउत्ति जमि सो भणति तत्तिएण मोल्लेण गहिता, तेण समं ममं सुहं तत्थ नगरे आगमणं गमणं च होहितित्ति, तेण नियगं घरं जीता, पुच्छिता का सि तुर्मति, ण- साहति, पच्छा तेण धूतत्ति गहिता एवं सा हाणिता, मूलिगाव भणिता - जहा एस तुज्झ धूयति, एवं सा तत्थ जहा नियए घरे तह सुहंसुद्देण अच्छति, तापनि सो सपरिजणो लोगो सीलेण य विणण य सब्बो अप्पपिज्जओ कओ, ताहे ताणि भगति सव्वाणि अहो इमा सीलचंदणत्ति, ताहे से वितियंपिय णामं कयं चंदणचि एव य कालो बच्चति । ताए य परिणीए अवमाणो जायति मच्छरिज्जति य को जाणति कयाइ एस एवं पडिवज्जेज्जा ?, ताहे अहं घरस्स अस्सामिणी भविस्सामि, तीसे य वाला अतीव रमणिज्जाऽतिकिण्डा य, अनया कमाई सो सेट्टी मज्झण्डे जगविरहिते आग
-
(27)
चन्दन
बाला वृ
॥३१८॥