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आगम
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भाग-4 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 2 अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2
प्रत सुत्रांक
औस्पाति
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दीप अनुक्रम [१]
नमस्कार Jल्लताए दिण्णं, अण्णेवि भिक्यू एंतगा तो एगाए मंजूसाए चेव कज्जिहिति णिग्गता। व्याख्यायांका
चेहगणिधाणे, दो मित्ताणि, तेहि णिधाणगं दिई, कल्ले सुनक्खत्ते लेहामोत्ति, एगण रति उक्खणिऊण इंगाला छूढा, चिति॥५५॥ यदिवसे गता, इंगाल पेच्छति सो धुत्तो भणति- अहो अम्हं मंदपुण्णया, इंगाला जाता, तेग णात, हिययं न दरिसेति, तस्स |
पडिमं करेति, दो मक्कडए गेहति, तस्स उवरि भन देति, ते छुहाइया तं पडिमं चडंति,, अण्णदा भोयणग सज्जितं, दार
गा तस्सच्चया आणिता, संगोविता, ण देति, भणति-- मक्कडगा जाता, आगतो, तत्थ लेप्पगट्टाणे आवेसावितो, मक्कडगा 8 मुक्का, किलकिलंता तस्स उवरिं विलग्गा, णात, दिण्णो भागो।।
सिक्खा,अस्थि धणुव्वेओ एगो राजपुत्तो, जथा सेणिओ तथा हिंडतो एगध उ ईसरपुत्तए सिक्खवेति,दवं विढत, तेसिट पिती, मिसगा चिंतति-बहुतं दबं एतस्स दिणं, जदया जाहिति ततिया मारिज्जिाहिति, तेण णातं, संचारितं णातगाणं-जहाई |
रात छाणपिंडए णदीए छुभीहामि ते लएज्जह, तेण लोलगा वालिता, एसा अम्ह विधित्ति तिहिपव्वणीसु दारएहि समं णदी-18 लाय छुभति, एवं णिच्चाहेतूण गट्ठो।
अत्थसत्थे एगेण पुषण दो सवित्तीओ, ववहारो ण छिज्जइ, इतो य देवी गुब्बिणी उज्जाणियं गता, ताओ उवाहिताओ, कसा भणति- मम पुत्तो जो होहिति सो अस्थसत्थं सिक्खिहिति, एतस्स असोगस्स हेट्ठा णिविडो ववहारं छिदिहिति ताव दोवि & अबिसेसेणं खाह पिवहात्ति, जीसे ण पुचो सा चिंतेति- एचितो ताव कालो लद्धोत्ति पडिसुतं, णाता, ण एसी ।
।।५५१॥
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