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________________ आगम (४०) भाग-4 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 2 अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2 प्रत सूत्रांक दीप अनुक्रम [१] नमस्कार चउविधा-हासा पओसा वामसा पुढोवेमाता । हासा-खुद्दगा अण्णं गाम मिक्खाचरियाए बच्चीत, वाणमंतर ओवायंति-ज-15 उपसगाथ व्याख्यायांदादि फव्वामो तो चिन्भडडंडरगकण्हवण्हएण य अच्चणिय देहामो, लद्ध, सा मग्गति, ते ण देंति, अण्णमण्णस्स कहणं, मग्गितूण || ॥५३६॥ दिण, एतं ते तंति, ताहे सयं चैव तं पक्खाइया, कंदप्पिया देवया तेसिं रूवं आवरेत्ता रमति, वियाला जातो, तेहि मग्गिया ण 8. दिट्ठा, देवताए आयरियाण कहिये । पदोसे संगमओ वीसा, एगत्थ देउलियाए साहू वासावासं वसित्ता गता, तेसि च एगो पुब्बपेसितो ततो चेव परिसार आगतो, ताए देवताए आवासितो, सा देवता चिंतेति-कि दढधम्मो पबत्ति सड्डीरूवेण उवसग्गेति, | सो णेच्छति, तुट्ठा बंदति । पुढोवेमाता हासेण कातुं पदोसेण करेज्जा, एवं संयोगो । माणुसा चउबिहा-हासा पदोसा बीमंसा | कुशीलपडिसेवणा, हासे-गणियाधुता खुङग भिक्खस्स गयं उवसग्गेति, तेण हया, रबो कहिय, खुडओ सदावितो, सो सिरिघरादिद्रुतं कहेति । पदोसे गयसुकुमाला सोमभूतिणा बबरोविओ, अहवा एगो धिज्जातीओ एगाए अविरतियाए सद्धिं अकिच्च सेवमाणो साधुणा दिट्ठा, पदोसमावबो साधु मारेमित्ति पधावितो, साधु पुच्छति-किं तुमे अज्ज दिट्ठति, साधू भणति- 'बहुं सुणेति कनेहि सो भणति किं निमित्तं एतं, एस अम्ह उवदेसो वित्थकराण, उबसंतमहओ जाओ । | वीमंसाए चंदउत्तो राया चाणकेण भणितो-पारत्तिय करेज्जसि, मुसीसो य किर आसि, अंतपुर धम्मकहण, उपसग्गिज्जति.. ॥५३६॥ अण्णतिस्थिया विणट्ठा णिच्छुढा य, साधू सहाविया भणंति-जदि राया अच्छति तो कहेमो, अतिगयो, राया उस्सरितो, अंतेपुरि-| याओ उवसग्गेति, हयातो, सिरिघरदित कहेति । कुसीलपडिसेवणाए ईसालुगमज्जाओ चत्तारि, रायसण्णात तेण घोसावित-सत्तपतिपरिक्खित्तं घरं ण लभति कोई पवेस, अयाणतो साहू वियाले क्सहिनिमित्तं अतिगतो, सो य पविसिमल्लओ, तत्थ पढमे | IOR k-RSS सऊहस्य (245)
SR No.035054
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 05 Aavashyak 2 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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