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आगम
(४०)
भाग-4 “आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2
प्रत
अनुकंपायां
मेंठ:
श्री आवश्यका
चूर्णी । उपोधात नियुक्ती
॥४६३॥
विवरीतोसि धेरा, सो भणति- मते अण्णो दिट्ठो, ताहे विवादे सा भणति अहं अप्पाणं सोहेमि, एवं करेहि, ताहे पहाता जक्खधर | गता, जो कारी सो लग्गति अंतरंडेण बोलेंतओ, अकारी मुच्चति, सा पहाविता, ताहे सो पिसायरूपं काऊणं साडएणं गेहति, ताहे सो तत्थ जक्ख भणति-जो मम मातापीतीहिं दिण्णल्लओ तं च पिसायं मोत्तूण जदि अणं जाणामि तो मे तुम जाणसित्ति, जक्खो विलक्खो पितेति- पेच्छह जारिसाणि मंतेति, अहयंपि वैचितो णाए, नत्थि सतित्तणं खु धुतीए, जाव चिंतेति ताव सा सरिडित्ति निष्फिडिता, ताहे थेरो सम्वेण लोगेण हीलितो, तस्स ताए अद्धितीए निहा नहा, ताहे रणो कणं गतं, ताहे रण्णा | अंतेपुरपालओ कतो, आभिसक्कं च हत्थिरयणं वासघरस्स हट्ठा वइ अच्छति, देवी हस्थिमेंठेण आसत्तिया,नवरि रति हस्थिणा हत्यो गवक्खेण पसारिओ, सा उतारिता, पुणरवि पभाते पडिविलइया, एवं बच्चति, अण्णता चिरं जातंति हत्थिमेंठेण हस्थिसंकलाए आहता, सा भणति-सो एरिसओ तारिसओ थेरो न सुयति, मा रूसह, तं थेये पेच्छति, सो चिंतेति-जदि एताओवि किन्नु ताओ अतिभदिकाओत्ति, एवं चिंततो मुत्तो, पभाते लोगो सन्वो उद्वितो, सो न उद्देति, रण्णो सिट्ठ, राया भणति-सुवतु, सत्तमे दिवसे उडितो, रष्णा पुच्छितो, कहित, जहा एगा देवी ण जाणामि कतराचि, एवं संबवहरति, ताहे रण्णा भिडमतो हत्थी कारितो, सन्याओ अंतेपुरियाओ मणिताओ- एतस्स अच्चणिय करेचा ओलंडेह, सब्वाहिं ओलंडीओ, सा णेच्छति, भणति-अहं बीहे. | मि, किं च शकट पञ्चहस्तेन, दशहस्तेन शृंगिणम् । इस्तिनं शतहस्तेन, देशत्यागेन दुर्जनम् ॥१॥ ताहे रण्णा उप्पलनालेन ।
आहता, मुच्छिता किल पडिता, वाहे से उवगतं जहा एसा कारित्ति, भणिता य-मत्तगयमारुभंतिया, भंडमयस्स गयस्स भायसी। दह मुच्छिय उप्पलाहता, तस्थ न मुच्छति संकलाहता ॥१॥ पुट्ठी से जोइया, जाव संकलप्पहारो दिहो, ताहे रण्णा हत्थी मेंठो
दीप अनुक्रम
सा॥४६३॥
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