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________________ आगम (४०) भाग-4 "आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2 प्रत चूणा नियुक्ता दाहरणं एवं तेण यहुयं गहित, जाहे बुच्चति पढाहि ताह एतगंपि तं घोसएहिं को तो अच्छति अण्णं सुणतो, अण्णदा आयरिया साहुसु भिक्खं गतेसु मज्झण्हे सण्णाभूमि गता, बहरसामीवि पडिस्सयवालो अच्छति, सो तेसिं साधणं वेंटियाओ मैडलीए रएता पताकाअपृथक्त्वाआवश्यक 15 मज्झे अप्पणा ठाउं वायणा पदिण्णो, ताहे परिवाडीए एक्कारसबि अंगाई बाएति पुब्बगत च, जाव य आयरिया आगता, ते ४ नुयोगे चितति- लहुं साहू आगता, सदं सुणेति मेघोघरसितगंभीरं, बहिता सुणता अच्छति, णातं जहा वइरोत्ति, ताहे ओसरिता पुणो * वज्रस्वाम्युउपायानात | सद्दवडिय कातूण अल्लीणा, महल्लं च निसीहिं करेंति, मा से संका भवेज्जा, ताहे तेण तुरिय टियाओ सट्ठाणे ठवियाओ, ठवेत्ता निग्गंतूण दंडगं गेण्हति पादे य पमज्जति, ताहे आयरिया चितीत-मा एतं साधू परिभविस्संति तो जाणावेमि, ताहे रतिं आयरिया साधू आपुच्छंति, जथा-अमुगगामं वच्चामि, तत्थ दो व तिष्णि व दिवस अच्छिस्सामि, तत्थ जोगपडिवण्णगा भणंतिअम्ह को वायणायरिओ', आयरिएहि माणितं- वइरोति, तेहिं विणीतहि तहत्ति पडिस्सुतं, पूर्ण आयरिया जाणगा, तेवि साहुणो | पडिलहित्ता कालनिवेदणादि बहरसामिस्स अप्पेंति, ताहे सबम्मि कते पच्छा णिसेज्जा रहता, सोवि भगवं निविट्ठो, एवं ते आगता, जहा आयरियस्स तहा सव्वं विणयं पयुजंति, जवि पुन्बतीता आलावगा तंपि ते विण्णासणनिमितं पुच्छंति, जेविय | मंदमहावी तेवि ठवेतुमारद्धा, तत्थ भगवं वालो अबालभावो, ताहे करकरस्स कति, एवं ते तुट्ठा भणंति जदि आयरिया | अच्छेज्ज कइवय दिवसे तो अम्ह एस सुतखंघो समपेज्जा, एवं तेसिं आयरियाणं पासे जे चिरस्स परिवाडीए गेहंति तं इमेण | एक्काए पोरिसीए सारित, एवं सो तेसिं बहुमओ जातो, आयरितावि णातूणं जाणाविता साधुत्ति ताहे तस्स अणुकंपणट्ठा आगता, अबसेस अझविज्जउत्ति, पुच्छति-विध सरति सज्झाओ ?, ताहे तुट्ठा साहनि जथा सरित, ताहे ते भणति- एसो चेव ASA दीप अनुक्रम (102)
SR No.035054
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 05 Aavashyak 2 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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