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________________ आगम (०२) भाग-2 “सूत्रकृत" - अंगसूत्र-२ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], अध्ययन [२], उद्देशक [-], नियुक्ति: [१६६-१६८], मूलं [१७-४३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-०२], अंग सूत्र-०२] “सूत्रकृत" जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रत मायाप्रत्यय सूत्रांक [१७-४३] दीप अनुक्रम [६४८ ६७४] श्रीसत्रक- सेतित्ति, जहा गलगा णाणाविहेहिं पासंडवेसेहिं अपरं बचेति, एवं चारिगावि चारैति, अण्णहा आइक्खंति, जहा पुट्ठो केणइ ताजणि कोसि तुम? मोढेरगातो आगतो भवान् ?, सो भणति-णाहं मोढेरगातो, भवद्यामादायातो, विकतो वा पुच्छइ कोइ-अशो! निउण ॥३४८ भणत्ति, किणतो अधियंतो एवं कूडकरिसावणं च्छेयं कूडगंति, से जहा वा केइ पुरिसे अंतो सल्ले मा मे दुक्खाविजिहित्ति कंट णो अणुण्णवति, विजेण अण्णण वा ण णीहरावेति, णो पलिविद्धसमेतित्ति, नान्येन केनचित् ओसहेण कोत्थति, केणइ चा पुढे दुबलो?, ण एतेण पसवणे पउणतित्ति, मा ससल्लो अञ्जवि होजा पच्छा एवं एवमियंति, जह से सयं णो उद्धरति एवमेव अण्ण्णवि पुट्ठो चेदणभीतो णत्थि सल्लोचि गिण्हइ, अविउमाणेत्ति परेण पुट्ठो वा अणालोएमाणो, तेणान्तर्गतेन दुःखेन पोल्लरुक्खोविव अन्तर्गतदावाग्निना अंतो अंतो झोसियाति, एवं एत्थ णं पारदारियादि विरहेणं तप्पंति, अलब्भमाणो पोलरुक्खोविव अन्तर्गतPA पात का अंतो अंतो शियाति, आह हि-तं मित्रमंतर्गतमूढमन्मथं' एप दृष्टान्तोऽयमर्थोपनयः-एवमेव मायी मायाकरो वा अचोरो अण्णो वा पुच्छिजंतोवि णो अपणो आलोएति, लोउत्तरिओवि किंचि मूलगुणातिचारं वा उत्तरगुणातिचारं वा कटु णो आलो. एति, आलोचना आख्यानं, प्रतीपं क्रमणं प्रतिक्रमणं, निन्दा आत्मसंतापे, गरहा परेसिं वा, तस्मात् निवर्त्तनं बिउट्टणं णो जधाFA वराह जं जस्स अवराहस्स अणुरूवं पायच्छित्तं लोगे चरेत् , लोके तावत् अगम्यं गत्या अगदाघेव, मद्यं पीला, णिब्धिसओ चा, मांस खाइत्ता माणवो धम्मकोविताणं उबढेति, जाव पच्छित्तं ते दिति, किंचित् अतिचारं पलंडुभक्खणादि कृत्वा मद्यं वा पीत्वा 'सद्यः पतति मांसेन' अध्यापकानामालोचयति जाव पच्छि, समये विश्वासाय विरुद्धं कृत्वा सयाणं सयाणं गुरूणं आलोएति, लोगुत्तरेबि एतं चेव णो आधारिधं, मायी अस्सि लोये मणुस्सलोए, जे ताय गृहस्था मायी सो कदाइ उस्सण्णविदोवा इमं लोग [363]
SR No.035052
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 02 Sootrakrut Churni Aagam 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages486
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sutrakritang
File Size50 MB
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