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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यक [८६ ९५] दीप अनुक्रम [ce ७] श्रीआचा रंग सूत्र चूणिः २ अध्य० ५ उद्देशः ॥ ८४ ॥ भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ २ ], उद्देशक [५], निर्युक्तिः [१९७...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक ८६-९५] दव्यबंधो पुत्रकलत्रमित्रहिरण्णादीणि भावे विसयकसायादी, जो एएणं बंधेण अप्पानं मोएना परा मोएति, एस वीरे पसंसिते जे बद्धे पडीमोयए, गवि जे असंजमवीरियमंते, कहं अप्पाणं परं कामेहिं मोयति १, भण्णति — सरीरे बेरग्गदरिसणेणं, तत्थ इमं निव्वेदसुतं 'जहा अंतो तहा वाहिं, जहा बाहिं तहा अंतो' अंतो सुसोभितमयं चापि तहेव, अहवा अभितरं से कुप्पमं जो उब्वसितुं बाहिरं कुआ, जावि य से बाहिरा च्छाया सुयी दीपति सावि असुयीभवति, सोवणघडो वा अमिज्झपुण्णो, अबि सो णिपरिसचचा सुयी घडो, ण तु सव्वस्सोयपरिस्सर्वतं सरीरमिति, महियघडेण अमिज्झभरिएण अवि णो तुल्यं शरीरगं, अहवा जहा कुट्टिम्स अंतो मुत्तपुरिसखेलसिंघाण गपित्त सोणिय किमि अंतउदरवासित्ता असुयिं भवति, बाहिंपि पगलंतकुडावेदितसरीरगस्म पुरिसस्स वपु रसियगमोणितादिएहिं असुतरं तं गंधेण अणुमरिन्तेहि मक्खिया सहस्सेहिं अणुगत मग्गस्स अप्पावि उव्जियति किमु परो जणो ?, मतगसरीरं वा कुधितं, जहा अंतो तहा चाहिं जहा बाहिं तहा अंतो, जीवंतस्स पूतिसभावं सरीरं गृहाणगंधआदीहिं वण्णभावणेहिं अच्चत्थं सुयी भवति, अंतो अंतो पूतिदेहंतराई, अंतो अंतोचि वीप्सा, जहा जहा अंतो तहा तहा, बाहिं पूतितरं, जहां तयसोणितमेद अड्डि मिंजसुकमिति, तं जहा अंतो तहा असुरतरं सव्वमन्तरं सुकं असुइतरं, तं च सरीरस्स उत्पत्ति, अतो को सुविवादो कामिणं ? का व कामासा ? अहवा तयमंसमोणितजठर अंतमुत्तपुरिसाणि अंतो अंतो, पुतिदेतराणि पासिय त्रिरतो, कई ?, अदिमवि द्रव्यं, जहां अंतो तहा चाहिं, भण्णति 'पुढो बीसवंताई' पिहू बित्थारे, दो सोता दो ना दोघाणा जीहा आमए पाउए, सम्परोमकृबेहि य, सच्चाई एयाई मिस विविहेदि वा पगारेहिं, पत्तेयं पत्तेयं कण्णमलसिंघाणमलखेलवंतपिचसुक उच्चार किमिसोयादि अनंतु, आगंतुतेहि वा वातस्तपमुहिं पूयरसियसोणित० किमिए य पुणो २ परिमोचनादि [96] ॥ ८४ ॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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