SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [२], उद्देशक [२], नियुक्ति: [१८७-१९७], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ७२-७६] (०१) IAN अरतिवजेन घृणि: HI २ उद्देशः प्रत वृत्यक [७२ श्रीआचा- पुणो पढ़ति, परंपरसुत्तसंबंधो जाव ते पण्णाणेहि अपरिहाणी ताव तं संजमे ठिचा रति कुज्जा इति, अददत्तं विसयकसाएहि रांग पत्र-I| कुरु तस्विवक्खे य ददत्तंति, एस संबंधो 'अरति आउट्टे' संजमे अरति रतिं विसयकसारहि कलत्तादिसुतं आउठे, जं भणितं होइ | २ अध्यक | णिण्णेहि, आरंभे वा आउट्टणासहो, संजमे रति कुज्जा, मणिभावे वेरग्गे पसत्यमूलगुणहाणेसु य आउट्टाहि, सा पुण पंचविहे आयारे रती विसयकसायनिग्गहे रतिं धम्मे रति अधम्मे अरई, तस्स एवं संजमरयस्य इह चेव अब्बावाहसुई माति, भणियं । |च 'तणसंधारणिविट्ठोवि मुणिवरो० गाहा, अप्पसत्थरईए कंडरीओ उदाहरणं गरएसु उबवण्णो, पसत्थरईए पोहरीओ, एवं अप्पसन्धरईयो पसत्थरति आउमाणो मेरामेहावी, मेहा ता 'वणंसि मुके' खीयतीति खणो खणमिचेण मुचति, भरहो जहा | सब्बकामेहिं बंधणेहि य, जे पुण अणुवदेसचारिणो कंडरियादि ते 'अणाणाए पुट्ठा णियति' अणाणा जहा अमिलसिता| अहितपवित्नी, पुट्ठा परीसहेहि, तत्थ इत्थीपरीसहो गरुयतरो तेण पुट्ठा मंदा बुद्धिश्रवचए मंदा, मोहो-कम्मं तेण पाउडा-छादिता इहपरलोइए अपाए ण बुझंति, विसयतिसिया इहलोगगवेसया कंडरियादी भणिया लिंगपच्छागडा, अण्णे पुण 'अपरिग्गहा भविम्सामों' अंतग्रहणा अहिंसगादि जाव अपरिग्गहा, संमं उत्थाय लद्धा पट्टपण्णा कंडरीओ जहा, 'अभिमुदं गाइति, जहा तण्हाइतो हत्थी सरंतो अप्पत्तो चेव कोई पंके खुप्पति, एवं सोऽवि भंजिहामि भोगे अंतरा चेव मरति, कोई पुण लज्जाए वा गारवेण वा पराणुयत्तीए वा णो लिंग मुपति संकिलिट्ठपरिणामो जहा खुडओ, अणाणाए पडिलेहेति, आणा भणिता, पडिलेडणा कामभोगणिविडचित्तत्तं, नाणाविहेहि उवाएहिं सवियप्पेहि य विसए पुणो २ पढिलेहिइ 'एस्थ मोहे पुणो पुणों' दबमोहे मज्जाति भावमोहो अण्णाणं संसारोबा, एत्थ भावमोहे संसारे पुणो पुणो भवंति, अहवा एत्थंति-पत्थं असले संसितो पुणो पूणो । ७६] ॥५८ दीप अनुक्रम [७३७७] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [70]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy