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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [२], उद्देशक [१], नियुक्ति: [१७२-१८६], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ६२-७१]
(०१)
श्रीआचा
चूर्णिः ॥४४॥
प्रत
वृत्यक
[६२७१]
हातिविजओ, काले जहिं काले, जत्तिएण वा कालेणं, जहा भरहेण सडीए वरिससइस्सेहि जितं, मतएण वा मासो जितो, भाषे गुणस्थाने पसत्थो अप्पसत्थो य विजयो परूवेयम्बो, अप्पसत्थभावविजएण अहिगारो, तत्र भावविजये 'सेतं कारक.' गाहा, 'लोगो भणिओ (१७६-८३) विजिओ कसायलोगो सेयं (१७७-८४) सुत्नाणुगमे सुन उचारेयर्थ जाव चालणा य पसिद्धी या पंचहा(छविह)विद्धि लक्षणं-'सुयं मे आयुसं तेणं भगवया एवमक्खाय' एस उबग्घातो, किं सुत्तं ?, भण्णइ-'जे गुणा से AV मूलढाणा' जो इति अणुदिहस्स ग्रहणं, गुणणं गुणो जं भणियं पभावो 'से' इति उद्दिटुस्स निदेसे, मूलं प्रतिष्ठा आधारो य एगट्ठा तिद्वंति तहिं तेण ठाणं, अहवा सुत्तकरण विहाणेणं गतिपञ्चागति 'जे गुणे से मूलढाणे' अस्थतो भंगविकल्पा भवति, जे गुणे | से मूले, जे मूले से गुणे, आम, एवं 'जे गुणे से ठाणे, जे ठाणे से गुणे', आम, अहवा जे मूले से ठाणे, जे ठाणे से मुले, आमं, अहवा 'जे गुणेसु बढद से मूले पट्टति, ते चेत्र विकल्पा, एवं एतेसिं गुणादीणं बंजणओ नाण अत्थो अनाण तं, तम्हा।। गुण णिविखविस्सामि, तत्थ गुणो तेरसविहो-'दब्वे खेत्ते काले' गाहा (१७८-८४) णामठवणाओ गयाओ, दयगुणा गाम | | दवमेव स गुणो घेप्पति, ण हि गुणा गुणवतो अत्यंतरभूया इतिकाउं 'दव्वगुणो दब्वं चेव गुणा' गाहा (१७९-८५)
सो तिविहो 'संकुचित विगसितत्तं' गाहा (१८०-८५) सवीरियसजोगीसदबयाए पदेससंदरणविसरणेगं पदीवोत्र जावर लोयतो, अहवा जीवदब्बगुणो अग्गिस्स उण्हवं बाउस्स चंचलतं, वायामो विकमो वीरत पुरिसगुणा, चलचं मीरुतं विक्वित्तं
इथिगुणा, अहवा नाणादिगुणा, अचेयणा दव्यगुणा ओसहाणं रसपीरियविधागगुणा, मीसदमगुगोवि खीरोदगं ति पावहरणं, 1 अहवा सावरणस्स आमस्स हस्थिणो वा गुणेण परवल पविसइ जोहेति नित्थरइ य, खेचगुणो देवकुरुसुसमसुसुम' गाहा ॥४॥
दीप अनुक्रम [६३
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पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: | दवितीयं अध्ययनं "लोकविजय"आरब्धः,
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