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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [४], नियुक्ति: [११६-१२५], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ३१-३८] (०१) JAVI प्रत वृत्यक [३१३८] श्रीआचा-मा ID भमरकीडपतंगादि 'आहच' णाम कयाइ पतंति, तंजहा-णिर्सि सलभाण दिवसतो सुहुमेदि लोगो कुलयो उपमिती, णिचं गिसूत्र वाती वातो ससु लोगागास जाव णिक्खुडेसु अहवा आदच आगत्य सच तो पतंति संपतंति, चसहेण काउजीवा तप्पेरिता चा|AL कायौ चूणिः | मसगादि 'अगणिं च खलु पुरति अग्गिणा पुट्ठो अग्गि बा फुसित्ता चप्पदा जालं फसिनावि खलु पूरणे समतो अण्णोण-| ४ उद्देश: ॥३१॥ गातसमागमतो संकुचंति तप्पमाणा, जहा मजारभएण मूमओ, तस्थ परियावअंतित्ति सञ्चओ आवर्जति, धूमेण जालादि वा | पनावेण वा मुच्छिता णिसण्णीभूया अग्गि परियावअंति, जं भणितं अग्गीभवंति, जे परियावनंति ते उदायंति, जतो एवं तेण | | ण एक अग्गी चेव भारभंति, तदारंभे अण्णेवि सचा विणस्संति, भणियं च-"दो भंते ! पुरिसा अण्णमण्णेण सद्धिं अगणिकाय" | तहा "जीवाणं एसमाघातो." तं परिणाय मेहाची जाव बेमि । प्रथमाध्ययनस्य अनिकायाख्यश्चतुर्थ उद्देशकः समाप्त ४|| ANI इदाणिं बाउस्स अबसरो,सो य अचक्खुसोति दुस्सद्वेयो, माय सिक्खगोतं असद्दहमाणो विप्पडिवज्जेजा तेण उकमो, जं वणस्सई | Dमण्णइ,एसेवकमो जेण सिक्खगो पडिबजइ, तेण चउहि एगिदियकाएहिं परूवितेहिं सब्बलोगप्पतीते यतसकाए सुठु सद्दहिहिति | | वायुजीवन, (वणस्सई)पुण पाएण लोगो सदहति,तेण पुर्व सो भण्णति, ण वाऊ, वणस्सती नहिं दारेहिं भाणियब्बो,निज्जुत्ती पठितसिद्धा, तण्णो करिस्सामि' तं दंसितं वणसती, इति परिसमत्तीए, एवं परिसम समणलक्खणं भवति,जं पुवकत समारंभ तं पवज अन्भुवगतो ण करेति,सम्म उत्थाय, भणितं छज्जीवकायसंजमे अद्वितो, अहिकयकायस्स वा,मंता-जाणित्ता, मति से अस्थि मतिमं-आमिणिधोहियनाणं घेपति, सुर्च तत्थेव, अहवा मइग्गहणा सधनाणाई गहियाई, कायाण अधिकयस्स वा अभयविदित्ता, अभयं सत्तरसविहो संजमो, अहका सातंति वा सुई वा परिणिवाणंति वा अभयंति वा एगट्ठा, तन्निवस्वो असातंति वा दुखंति | IMM॥३१॥ दीप अनुक्रम [३२ ३९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रथम अध्ययने पंचम उद्देशक: 'वनस्पतिकाय:' आरब्धः, [43]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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