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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [१३-१७] दीप अनुक्रम [२३-१८) भाग-1 "आचार" अंगसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१] उद्देशक [२] निर्बुक्तिः [६८-१०५] [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १३-१७] श्रीजात्रा गंग मूत्र वृर्णिः ।। २१ ।। - मसुरादणं पडूमा लमाणी णहमति वा मुंजति एवमादी वाणयओ वा अललाम घरं पवितो लजति, लोउचरे संजम एव लजा, भणियं च "लना दवा संजम भने" असं कार्ड लज्जति, पुडी णाम पतेये २, पास पचकखाणाचा ढवि समारभतो लज्जति अवाने लजमा पासादि, कृतिस्थिर पुणे लज्जणिज्जेवि विषयामा अडिए परिजुष्णे दुस्संबोधे अवियाण परिणाहारादीका रोटि कुलियकोदालादीहि सत्येहि समारभंति, 'अणगार'नि अगा रुकवा तेहि क अगार अगार से पत्थ ते अणगारा, दवे चस्यादि, मावे अणगारा माह. ते सीलिंगमहस्रकखण्ड पृढचं पण समारभंति, इतरे पुण निणि निसट्टा पाया पति अणमारा गाहा (१९३३) लोपण अणगारा भण्णमाणा भण्णंती पूयासक्कारहेड पुर्ण पाति 'अणगारादिणो विहिं नाहा ( १००० ३३) मलिशवर अप्पार्ण करेंति, पुढविसमारंभविरण दुगुद्रमाणा, जाम धन्थं कदमोदरण पुन्यमाणं एवं ते जे नेव दूमेति तं चैव करत शेवा, जटा एककमि गांमे सुइबीडी, तस्स ग्रामस्य एगस्य हि केणता चिपनि तो उसकी महियादि से हाति अदा यस्त गिहे बलद्दी मतो. कम्माशिवडते भणिय-संधि (सोनीष, वं च ठाणं पाणिणं यावद, निप्फेडिए चंडाला उडता विचियं कुज्ज, हिं कम्बोपुकिओ चंडाला दिग्ज, तम वृर्णमा किंतु किंतु किंतु किम्बुति भणति, विक्रिचतु मयं एवमेव सं दामयगाणं देव चम्मेण वयाउ वह सिंगाणि उच्छुवा कीरहित मिस्सि डिडिवि धूमो कज्जहिति उनीण, पहारुणा मत्थकंडा मविस्व एवं पवि जहा परिवर्त एवं अण्णतित्थियानि तं चैव दूति चेत्र करेंति, दामाद करे हिंसे नोयया च यासोक तणावगमादिपरिग्गडो, हलकु ला शुविबोधः २ उद्देशः [33] ॥ २१ ॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र- [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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