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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [२], नियुक्ति: [२८४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१६] (०१) चर्णिः प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-१६] श्रीश्राचा बहुचायी रीयति गामाणुगाम, माहणो पुव्यवणितो, न तम्स बहुवयो, यदुक्तं भवति-मोणेण, अहवा जायणि अणुण्णवणिं च | रांग सूत्र मोतुं पुट्ठस्स बागरणं च, जहा सादिदत्तातपुच्छा, सेर्स मोणं, किंच-स एवं गुत्तो सुसयणेहिं तत्थ पुछिसु (७५) एगचरावि एगदा राओ एगा चरंति एगचग उम्भामिया, उम्भामगपुच्छत्ति, एस्थ को आगो आसी मणुस्सो पुरिसो वा ? इथि। ॥३१६॥ पुच्छति, अहवा दोषि णं, जणाइआगमं पुच्छंति-अस्थि एत्थ कोयी देवाओ कप्पडिओ वा ?, तुसिणीओ अच्छा, दटुं चा | भणंति-को तुम?, तत्थवि मोणं अच्छति, ण तेसि उम्भामइल्लाण वायपि देति, पच्छा ते अचाहिते कम्मइ, एत्थ पुच्छिजंतोवि | वायं ण देइत्तिकाऊणं रुस्संति पिटुंति य, उम्भामिया य उभामगं सो ण साहतिनिकाउं, किं आगतो आसि?णागतोत्ति, अपा हिते कसाइय भण्णति-अक्खाहि धम्मे, अहवा हंसपरिणो विसयसमासनिरोही णिवणमुहममाणेहिं वा पेहमाणो विसयसंगAN दोसे अ पेहमाणो, इह परन्थ य अपडिने, तंजहा-णो इहलोगट्टयाए तवं अणुचिट्ठिस्सामि, विसय सुहेसु य अपडिनो, सब प्पमादेसु वा, एगतरपुच्छा गता, सुत्ता रागादिसु, इदाथि केह भणति-प्रभू, पच्छा जेण से दिट्ठी पविसंती, पुने वा मातरि वा, जेण भण्णति-अयमंतरंसि को पत्थं के भणंति !, ते चेव एगचरा आगंतुं दट्टणं भणंति-अयमंतरीस, अयं अस्मिन् अंतरे | | अम्हसंतगे को एत्थं, एवं वुत्तेहिं अहं भिकात्ति एवं बुत्तेवि रुमति, केण तव दिवं? किंवा तुम अम्ह विहारट्ठाणे चिट्ठसि ? | अकोसेहिति वा, कम्मारगस्स वा ठाओ सामिएण दिनो होजा, पच्छा रन्नो भण्णति-को एस, सामी द्वितो, तुसिणीओ चिट्ठति, तत्थ गिहत्थे ममत्तं, कमाइने संका य, ने सकमाइते णातुं ज्झाति मेव ण भवति, पदमं दाऊणं एत्ताहे रुस्सह, असंकिते चेव ज्झाति, | जंसि एगे पवेदेति सिसिरे मामले पवायते जा गिम्हकाले एते अतिथिया मिहत्था वा णिवेदेति, सिसिरं सिसिरे वा| दीप ॥३१६॥ अनुक्रम [२८८ Ka पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [328]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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