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________________ आगम (०१) प्रत नृत्यक [१३-१७] दीप अनुक्रम [२३-१८) श्री आनारोग सूत्रभूणिः ।। १९ ।। भाग-1 "आचार" अंगसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१] उद्देशक [२] निर्बुक्तिः [६८-१०५] [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १३-१७] - गाहा (९९३३) अणगारवाणी' गाहा (२००-३२) कई सयं वह' गाडा (१०१-३४) अण्णेय गरूपाति 'जो पुढवि समारभते गाहा (१९२-३४) पुत्रविं समारमंत्रा' गाहा (१०३-३४) इदाणि णिनिति एवं विया गिऊ गाहा (१-४-३४) से मुणी परिणायकम्मेति मिति गुत्ता गुत्तीहि गाढ़ा (१०५३४) अड्डे लोट परिजुणे (१०६-३४) पदच्छेदेकते र बट्टी नगडादिचकाणं एकती दूरतो वा वरिताओं आचालिअंति सो बट्ट मण्णति, कंबले पत्ताधमादि वा सरहा (हाइ), भावदोषही तेहिं संपीडित जीवचक संसारचक्के अणुपरीति, अडवा पंचहिं इंदियविसपदि अवा कसायदही, या दंसणमोहं चरितमो यमिच्छनमोदो अभिगहियअणभिरंगहि तेहिं चरिमोदो कसायणीकसा मोहविजेण, अवा अडविण कम्मेण लोगस्य अद्भुविदो विक्खेवी, अप्पसत्येण जीवोदय भाव लोगेण अहिगारी, तत्थवि सचीपंचेदिय लोएवं जी सम्मनं चरिचं या चरिताचरितं वा पडिवजेजा, अवा सब्वणं लोगेणं अहिगारो, जओ अट्टो निच्चयं नियतं वा ऊ परोसतो वा ऊ सोरगी दरिदो, जो बाद म लगोडविन लमइ, तिसिओ पाणियं बुद्धिन असणं आउरो मेस एवमादि परिज्जूणो नागादीहिं जुण्णी परिजुनोचि वाइ, जहा जिणं सरीर बेरीओ रुखो, अभिणी पडो जिणं गिहं सग पा एवमादि, मावजुष्णो उदश्य भाव उकडो य सरथनाणादिभावपरिक्षीणो अनंतगुणपरिहाण, जहा व विकास अक्खरस्य अनंतभागी उम्पाटो, बोहणं बोही, दुक्खेण स दुक्खवोही, सी एवं अज्झाणेण दुलोधी व लोगो भवति, जह मे अजो, असंबोदी वा अदा मदत्तो, को देऊ ?, अयाणचं, जति अण्णाणतणेण परिजुमो परिणने मंदचिमणी मंदविण्यातणेण दुस्वीही, एवं परोपकारणं परेसिं पृथ्वी निक्षेपाद २ उद्देशः [31] ।। १९ ।। पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र- [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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