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________________ प्रत वृत्यंक [१७२ १८०] दीप अनुक्रम [१८६ १९३] भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ ६ ] उद्देशक [१], निर्युक्तिः [२५० २५२], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १७२ - १८०] श्री आचा रांग सूत्र चूर्णि: ॥२०५॥ जहा महोरगा, एतेसिमं थले चरा बुतिया, केह जले जाता थले विचरंति जहा मंदुकादि, वेइंदियादि संखगगादि, चिकखल्लजले वि जाता उभयचरा भवंति, जाखिणो चिक्खल्लजलयरा भवंति के उभयचरा, आकासगामी आगासेज गच्छ पक्खिणो, 'पाणा पाणे किलेसंति' ते सव्वेऽवि पाणा पाणे तुल्लजातिए अतुलजातिते वा चाहिँ अंतो य किलेस्संति, तंजहा-केह उवहणंति के संघति जाव जीवियाओ ववरोविन्ति, देवनारगाणं केवलं सारीरं माणसं च वेयणं उप्पाईति, णो उद्दवेंति, ओरालियस रीरे परोप्परं संघ| ती जाव उवेंति, तं एतं 'पास लोए महम्भय' लोगो छज्जीवनिकायलोगो जहुद्दिद्रुकमेणं, जहुत्तरोगादि जाब वासगा य णो पाणे किलेसेन्ति, महंतं भयं महम्भयं जं भणितं मरणं, तं एवं पचा मा हु तुमं कच्छभसरिसं काहिसि किं भयं ? - बहुदुक्खा हु जंतवो' चणि जेसिं दुक्खाणि, जं भणितं बहुकम्मा, जो भणितो रागादिकमो पच्छा संसारकमो, तंजहा - वासगा रसगा, एतेणं बहुकिलेसा बहुदुक्खा, जायंतीति जंतवो, कम्मोदयाओ वा जहा कच्छुल्लो कच्छु, एवं 'सत्ता का मेहिं माणवा' सत्ता मुच्छिता, | अप्पसत्थिच्छाकामेसु मदनकामेसु, मणो अवचाणि माणवा, लोगसिद्धं, अबलेण वधं गच्छति तस्स बलं विजतीति खुधतिसासीत उण्डदंस मसग रोगवादिपरीसहहता अत्रलेणं छेवसंघयणेणं, केण छुहादिपभंगुरेण करणभूतेण तप्पगारेण वह एगेंदिया| दीणं सत्ताणं जाव पंचिदियाण तितिरादिणं, कंवंति पत्थंति गच्छंति एगट्ठा, एवं मुसावायं जाब परिग्गहं, सरतीति सरीरं, भिस भंगसीलं पभंगुरं, तेण छुहादिपभंगुरेण सरीरेण वह कंखतीति बढ्छ, अहवा अबलेण वहं गच्छंति, सरीरेण पभंगुरेण, जुद्धादि असह अबलं, तब्बलणिमित्तं अहंमं काउं वधो-संसारो तं गच्छति, केण ? - सरीरेण पभंगुरेण, अहवा अध्येणावि दुक्खेण भजति अप्पभंगगुणं, एवं 'अट्टे से बहुदुक्खे' अड्डो पुत्रवणिओ रोगायंको वा सो एवं अट्टो दुक्ख उवसमणिमितं काय व हे पसञ्जति, जतो प्राण क्लेशादि [217] | ॥२०५॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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