SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [१७२ १८०] दीप अनुक्रम [१८६ १९३] भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ ६ ], उद्देशक [१], निर्युक्तिः [२५० २५२ ], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १७२-१८०] श्रीआचा रांग सूत्र चूर्णि ॥२०४॥ तमिति कम्मस्स णिसे, सुमेध जहा तत्थ णं जहा तहा, अहंवा जहा कम्माणि तहा विवागो, 'संति पाणा अंधा' अगमा नरसु चिंधतार तिमिसेसु अपेच्छता, एगिंदियविगलिंदिया वा, जेसिपि चक्खुईदिये अत्थि तेवि बुद्धीविहीणा एवं चैव दट्ठव्या, भावे वा मिच्छदिट्ठी, अंधा तमं पचिट्ठा० आलावतो, समपि दुविहं दन्यतमं अंधगारो, भावतमं मिच्छत्तादिओ, 'तमेव सई असई' कम्मं सई किया से असई - अणेगसो 'अतियच्च' पविसित्ता असुभस्थाणाई उच्चावते फासे अणे गप्पगारे सीतउसिणे सुभासुभादओ अहवा दीहकालडिओ उच्चावया सातासाता, महती द्विती कार्यद्विती भवद्विती वा दीहकालिया पडिवेदेति, 'बुद्धेहिं एयं पवेदियं' णिचं आत्मनि गुरुषु बहुवचनं, नाणादिबुदेहिं तिम्थगरादी एडिं, गाणमणेलिस, साधु आदितो वा वेदियं पवेदियं, जहा उद्दिट्ठ| कमेणं जं च वक्खति 'संति पाणा वासगा रसगा' वासंतीति वासगा -भासालद्धी संपण्णा बेइंदियादि वासमा, रसगा णाम जे जिम्मिदियलद्धिसंपन्ना, तिचा तित्तादिरसे उबलमंति, किमिगजलोगराजगादी, केयि रसगा चैव ण तु वासा, एगिंदिया ण वासगा णरसगा, पैदियतेऽवि सति के व्धितियाण वासना भवंति, रस आसादलद्वी पुण सव्वेसिं, सावि कस्सर उपहम्मति, एवं जस्स जति इदिया ते भावेयच्या जाब पंचिदियतिरिया, तेसिपि केसिंचि उवहताणि इंदियाणि, बुद्धि सरीरं वा, अहवा 'बुहेहिं एवं पवेदितं| संति पाणा वासगा रसगा' संति तिसुवि कालेसु छकाया, ण तुच्छिअंति, पाणिणो इति बत्तव्वे सरीरे आओवतारं काउं पाणा बुचंति, वासंतीति वासगा, कोइलमदासलागनूयादि, तत्थ तु जे जस्स गुणो सो तस्स विणासओ कार्ड, वासितदोसेणं पंजरत्था सइरपतारवियोगाओ गिरोधादीणि दुक्खाणि अणुभांति, रसिता रसगा महिवराहमितगतितिर बद्धाति, उदते उद्गचरा, मच्छगकच्छभमगर गाहा ( ) सुभगा ते दुविदा-संमुच्छिमा गम्भवंतिया य, उदगचरचि जे थले वि जाता उदगे चरंति ते उद्गचरगा, पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि : [216] अंधादि ॥२०४॥
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy