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________________ आगम भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [4], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२५०-२५२], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १७२-१८०] (०१) उत्थितादि प्रत वृत्यक [१७२१८०] श्रीआचा | किटति वाणं धारणं पवेयणं तवफलं नाणादिसु पजोएआ, कस्स पुण सोवाते वा कहयंति ?, तेसिं चेव णराणं समुट्टियाणं, समु-10 रांग सूत्र-1 ट्ठाणं दवे भावे य, दवे पुरिसा अणुट्टिता, इत्थियाओ उट्टियाओ, भावे दोवि उडियाई उडेउकामाणि वा, णिक्खित्तमचूर्णिः INY Vधेसु, सत्थं छुरियादिवावारो, छिंदणा भिंदणा, अहवा णिक्खित्तदंडाणं पंच राय कुहा आरोहिता, जे य णिक्यमिउकामा तेसिं ॥२०॥ विसेसेण कहयंति, नाणादि ३ समाहियाणं, तिविहाय पज्जुवासणाए, कोति निक्खिनदंडोण य समाहितो जहा ओहाणुप्पेही | अणुवयुक्तो चा, पण्णाणमंताण-बुद्धिसंपण्णाणं, इतरे सुत्तत्थहाणी, ण य गिर्हति, सति सणिते आयरियाणं इह गहणो, इह प्रवचने, मोनिमग्गो मुत्तिए मग्गो २ मुत्तेहिं चा अणुचिण्णो मग्गो सो, इणमेव जिग्गंथं पात्र पणं नागादि वा मुत्तिमग्गो, मुत्तिनाम मणिब्याण, जं भणितं सिद्धी, एवं एगे महावीरा, एवं एगे सुणित्ता, अविसदा असुणित्तावि पत्तेयबुद्धजाइस्सरणादि, अक्यि "दोहि ठाणेहि आता धम्म लमिजा-सोचा य अभिसमिचाय"वीरा भणिता, 'विपरकमंति' विविधेहिं पगारेहि जयंति-परकमंति, | विधुणंति, अहवा परो-संजमो मोक्खो वा तत्थ परकमंति, परीसहा वा परकमंति, पासह एगे विसीदमाणे'पापहत्ति पस्सह, एगे PA पासत्यादि, सेलगवत् सीयंति, अहवा विविहं सीयंति नाणादि ३, जेहिं इह अप्पीकता पण्णा ते अत्तपन्ना ण अत्तषण्णा अणतINI पण्णा अपत्तपण्णा वा, अहवा अत्ता-इट्ठा अम्हण अपणो हितकरी पणा, किह पुण ते विसीदति ?, जहा चा उत्सग्गपरिणाए पडिलोमउवसम्गेहि य, कीवा बसगता केति सलिंगेसु चेव बहता पागाइवायाइसु वति, ते णो पुणो अमिलति माणुसादि, |एतत्थं 'सोहं वेमि' सेत्ति णिसे जहत्ति ओवम्मे 'कुम्मोनि कच्चभो, हरतीति हरतो, किं हरति ?, बाहिरमल, विविहं णिवेसिय |चित्तं कसभस्स सयणादिसु हरते य, केरिसो पृण सो हरतो ?, घणसेवालेण वा पउमपत्तेहि वा पच्छन्नपलासो, जतिवि तस्थ दुपद-1 २०१॥ दीप अनुक्रम [१८६ १९३] Ka पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [213]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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