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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [६], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२५०-२५२], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १७२-१८ + गाथा: ] (०१) धूनना प्रत वृत्यक [१७२१८०] श्रीआचा 12. मत्तीए, एतातित्ति तस्स परियाता एतावति य परियायसेसा इति ॥ लोगसारविजओ णाम पंचमं अझयण सम्मत्तं ॥ रांग सूत्र- 1 ____ संबंधो लोगसारे हितो कम्मं धुणति (२४९-२५०) पढमे णियगविहुणणा, जहा अतारिसे मुणी, वितिते कम्माण विहुणणा चूर्णिः | 'सुब्भि अहवा दुभि अहवा तत्थ भेरवा', वतिए उबगरणसरीराणं,धु णाति भिक्खू अचेलो परिवसितो तस्स णं भिक्खुस्स णो एवं ॥२०॥ | भवति-सुत्तं जाइस्सामि, सरीरे किसावाहा, चउत्थे गारवतिगस्स विहुणणा, नियमाणावि एगे आयारगोयर० उबसम्गासंमाणो य पंचमे, संतेगतिया जेण लूसगा भवंति, अणुओगदारा चत्तारि, णामणिफण्णे धुर्व, दयधुवं जं धुवति जहा चरंडी पसम| गादि धुवति, हत्थीयो रुक्खं धुणति वाओ वा, फाली वा तत्थेव मले, भावधुगणा कम्मं तवसा धूयइत्ति, णामणिप्फण्णो गतो। सुत्तालावए सुत्तं ओषज्झमाणो (स. १७३) संबुज्झमाणो णिबुज्झमाणो पयुज्झमाणो सत्थपरिण्णाओ आरम्भ जं भणितं जंच | वक्खमाणं अणुत्तरं लोगसारं, तिविहं या बोहिं,'इह माणवेमु' इहेति इह सासणे, इह वा चरिने, माणवेसु आघाई अक्खाति, गरे, गराणं चेब, तिरिया ण सकेंति अक्खाइउं, केरिसो अक्खाति ?, जस्स इमाओ जोणीओ, जाइओति पगारा, ते य जीवादी | णवपयथा अन्नतिस्थियजाईओ वा, अहवा एगिदियजाईमाईओ, सब्बग्गहणा दबखेनकालभावेसु अग्घाति, सेमाणि य संतपदपरूवणादीणि जहासम्भवंति, पडिलेहियाओ ताओ मुटु पडिलेहियाओ सुपडिलेहियाओ, अग्धाति-अक्खाति, सेति णिद्देसे गाणंति जहत्थोवलं, त केरिसं ?, रलतोरेकत्वे ( उबलं कायवे ) असरिसं, तं च पंचविह, अहवा असरिसं केवलणाणं तेण असरिसमेव सुयनाणं कधेति, देसणं चरितं तवं विणयं च कहेइ आयरिओ, किटतेत्ति वा कहेतेत्ति वा एगट्ठा, अहवा आइक्चविभागेहि, किडतेत्ति पवेदेति, कीर्तिग्रहणा आइक्खति, व्रतसमितिकपायाणां धारण रक्षण, आयरिया विभागेहिं तेसिं चेर भेदं amamam ॥२०॥ दीप अनुक्रम [१८६१९३] र पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: षष्ठ-अध्ययनं 'दयुत' आरब्धः, षष्ठं-अध्ययने प्रथम-उद्देशक: 'स्वजन विधुनन' आरब्धः, [212]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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