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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यक [१५६ १५९] दीप अनुक्रम [१६९ १७२] श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥ १८२ ॥ भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [४], निर्युक्तिः [ २४९...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १५६-१५९] वयसा सुरण यवत्तावते चउरो भंगा, सुएणं अध्वत्तो जस्स आयारपगप्पो अत्थतो पण गतो गच्छवासीणं, गच्छनिग्गयाणं तीसवरिसहिडो, एते अवचा, बत्ता सुयवयेहिं चत्तारि गंगा जोएयव्वा वयसुए य अवत्ताणं बहुगाणंपि वत्तरहियाणं दोसो - आता पवयणं संजमं, अण्णो पुण सुतेण अब्बत्तो वयेण सोलसबरिसेहिं उचिष्णो जतिवि साहस्समो तस्सवि दोसो, अवरो सुतेण बत्तो आयारपगप्पो पढितो सुत्ततोऽचि अत्थतो, पण वरण बचे, तस्सवि एगचरस्स दोसो, सुतेण बतेणचि बत्तो, जिणकप्पे यो परिहारियो अहालंदियों, जो वा तेसिं परिकम्मं करेंति, एतवतिरित्ता जतिवि उभयविता 'साहम्मिएहि संयुज्झते हिंति' गाहा, तस्स परं कारणियस्स अणुष्णा जाव कारणं, एवं तेसिं गगा गच्छमाणाणं इमेहिं दिता दिअंति 'जह सायरंमि मीणा संखोभं सायरस्स असता ' गाहा, 'जहा दियापोतम पंत जातं ० ' गाहा, गच्छंमि केइ पुरिसा सारणीयी हि चोदिता संता । णितिं ततो सुहका भी णिग्गयमेत्ता विणस्संति॥ १ ॥ एवं तस्स अवियचस्स दुआतं दुष्परकंर्त वयसावि एगे बुचिता कुप्पंति माणवा' वयसा वायाए एते अब्बत्ता एगचरा अणेगचरा वा बुयिता- भणिता कुप्पंति कुज्यंति व कंति लुब्भंति, केरिसाए वायाए कुष्पंति ? जहा के इमे ? अम्हं एए चैव दट्टब्बा तिवग्गे बंभणाति तिवरंगपरिचार सुद्दा पच्चयंति १, एवं थंभे मायाएचि लोभेऽवि जीएवं अविसदा कायेणावि पृट्ठा कुप्पंति, बत्ता पुण वयसा कार्यगवि पुंडा ण कुप्पंति, जहा खंभो णिकंपो, इमेण चदोसा 'उण्णयमाणे य णरे महता मोहेण मुज्झति' एगचरो अबतो उन्नमिअमाणे य कहिंचि कविवया सिलोगा कट्टिचा, गिहत्थत्तणे या कलावगा सुत्ता, फुडवको वा संभावणे, केयि उप्पासणबुद्धीये भणति तं अहो पव्वइओ धम्मकही, ण एरिसो अस्थि अण्णो णजति जहा बंभणस्स वाया सकतअभिधारणजुत्ता, पायते वा महाकव्बाई जानमाणो, उनामियाति अंगुलिं उक्खिवित्ता अव्व व्यक्ताव्यक्तादि [194] ॥१८२॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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