SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [१४० १४५] दीप अनुक्रम [१५३ १५८] श्रीआचा रांग सूत्रचूर्णिः ॥ १६२॥ भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [१], निर्युक्तिः [२३४-२४९], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १४०-१४५] समता णिज्जमाणा परिणिज्जमाणा, इह लोगेवि महामोदा पारदारिया अकोसवहबंधपहणणाईहि य दुक्खेहिं पाहिज्जेते, पासाहि बज्झरतियेसु बज्झे परिणिज्जमाणे, अहवा विसयसोतेहिं बुज्झमाणे रामदोसबद्धे तस्थेव तत्थेव परिणिज्जमाणे, कोयि रज्जिता दुस्पति, पुणो रजति, एवं जहेणं बाहेति मोहे, जेण वा कम्मेण संसारसमुद्दे परिणिअंति, तंजहा- पुणो मच्चू पुणो मोहो 'एत्थ मोहे पुणो पुणो एत्थ संसारमोहे पुणो २, जायंति, एत्थ वा संसारे भमंताणं मोहो पुणो पुणो भवति, जं भणितं कम्मबंधो, अहवा दंसणनाणमोहे भवति, जेण तस्स तप्पचणीयत्तणतो लोयसारलंभो ण भवति, पडिज य- 'तस्थ फासे पुणो पुणो दुक्खा फासे एवं जाव सद्दे तं एवंविहाणि विसयनिमित्तं दुक्खं पार्वति आरंभे य पवशंति, जतो पढिअति- 'आवंती के आवंती' अहवा कतरे तेसु तेसु गिद्धा आवंति जावंति केयि वृत्तं भवति, आरंभेण जीवतीति आरंभजीवी असंजया-'आदाणं जिक्खेबो-भासुरसग्गो' 'अद्धाणगमणाति, सब्वे पमत जोगा समणस्स होति आरंभो' 'एतेसु'त्ति एतेसु सु जीवनिकायेसु आरंभेण जीवंति तदुवरोहेण, जं भणितं असंजमेणं, जेसु अण्णे मुसावाताति अस्सवा, तेचि एस चैव प्रायसो काएम विपतंति 'पत्थवि बाल'ति एत्यंति एत्थं संजमे आरंमे वा परि समता विसए लभित्ता तच्त्रिप्पयोमे वा परितम्यति, पढिअइ य-' परिपञ्चमाणे गरगउववाते परियायं एति परिपञ्चति, जं भणितं अवरज्झति, रमति हिंसातिएस पात्रकम्मेसु सञ्जति रजति, तंजहा मियख्वाए कोपि रमति, अघातावि केयि रमंति, तंजहा सुद्ध हतो सुटु मारिउत्ति, एवमादि परवयणणंदिगो एवं अलिएवि वृद्धार्वेति चोरियंषि सति चिचे करेंति, एवं अनत्थ विभासा, 'असरणं सरणं'ति मन्नति, जहा सो कोंकणगदार ओ, विसयणिमितं च केपि पव्वर्ज अम्भुर्वेतादि ताओ ताओ मायाओ करेंति, जन्थ सुतं 'इहमेगेसि एगचरिया' इहेति इह पासंडिएसु, चरणं चरिया सा य भणिता, एगस्स बहूणं मोहावृचिः [174] ॥ १६२॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy