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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [५], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२३४-२४९], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १४०-१४५] (०१) भीआचारांग सूत्र प्रत वृत्यक [१४०१४५] एयं अण्णाणसंसर्य जाणगापरिष्णया परिणाय, कह परियाणति है, जहताणि मिच्छाणाणाणि पुवावरविरुद्धत्ता संदेहजणयाणि 2. संसारकाउं संसयभूयाणि चेव भवंति, जस्स य एगमवि पदं पा सम्म उवलद्धं तस जहत्थमवि घुणक्खरं वा अणुवलद्धमेव भवति,0 परिज्ञादि ॥१६॥ तं एवं सम्म नाणेण अण्णाणसंसयं अतत्तमिति परिणाय पचक्खाणपरिणाय परियाणिजा-तत्तयुद्धिं ततो पडिसेवए, मरणसंसINI यपि अप्पणो वा परस्स वा तदुभयस्स चा दुविहाए परिणाए परियाणिआ, जं भणितं-जाणित्ता ण करिआ, तं एवं दुविहमवि संसयं दुविहाए परिणाए परियाणिचा संसारे परिणाते भवति, 'दब्वे खित्ते काले भावे य भवे य होति संसारो। तस्स पुण हेतुभूतं संसारे कम्ममढविहं ॥१॥' तं जाणणापरिणाए असंदिद्धं णचा पञ्चक्वाणपरिणाए सव्यं पाणावार्य परियाणासिचि, | भणियं च-'ममत् परियाणामि' परिणाओ णाम गमपचक्खायओ, संसयं परियाणतो जाणणापरिणाए अवियाणतो पञ्चक्खा णपरिणाए अपडिसिद्धस्स संसारे अपरिणाए, जाणणापरिणागण संसारो दुक्खाणि य परिष्णाताणि भवंति, पचक्खाणअपरिण्णाएवि 'ण सा गती अस्थि जत्थ असौ ण उबवअति०' अप्पचक्खाय अस्सबदारो, एवं मुसाबात अपरिजाणतो, अदिन्न, परिम्गहंति, मेहुणंति जेण दुरणुचरं तेणं पिहं सुतं आरद्धं-'जे छेए से सागारियं ण सेवे' या य एवं दुकर जंचउवयाणि अणुपालिअंति, बक्खति य-तदेवेगेसि महब्भयं एवं दुकरं तं बंभचरियं जं अणुपालि जति, अतो भणति-'जे छेए सागारियं ण से सेवे' जे| | इति अणुद्दिवस्स निदेसे छओ अणुत्रहओ, णथि से किंचि चयणिजं, भमं हणित्ताविपमातिएवि, अगारेहिं सह भवतीति सागारियं मेहुणं, ससमयवण्णो वा जो उत्तमो साहवादी वा सागारियं ण सेवति जोगत्तियकरणतिएणं, पाएणं तबिमित्तं सेसअस्सवेहिवि पवचिति, भणियं च-'मूलमेनमहम्मस्स, महादोसमुस्सयंक' ते च मिहीणं कृच्छितं अतिप्पियं च, पासंडीण कुच्छितं अतिपियं च, एगेसिं- ॥१०॥ दीप अनुक्रम [१५३१५८] र पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [172]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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