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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [४], उद्देशक [२], नियुक्ति: [२२७-२३३], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १३०-१३३]
(०१)
स्पशप्रतिवेदनादि
श्रीश्राचा संग सूत्र
चूर्णिः ॥१४॥
प्रत
| संथर्वति, जं भणित-संजुअंति, ते एवं मिच्छादिही जहा जहा भाविणी तहा तहा गतिसु उववर्जति, अहोववाइए कास पडिसंवे-100
दयंति' अहवा पुढो पुढो जाई पम्गप्पेंति, जं बु जारिसं जाई पगप्रेति तारिसं तारिसं जाई पप्प इहमेगेसि संथवो भवति, | इह संसारे संथुति संथवो, अप्पसत्थो नेरइओ नेरइयत्तेण, संथुवति णाम निद्दिसिजति एवमादि, पसत्थं तु देवो देवण, अहवा | समागमो संथवो, पुणरवि ते संसार संसरंति, अण्णमण्णस्स माइचाए पतिचाए संथुविहिंति, ते एवं संसारिणो जत्थ जत्थ उव|वअंति तत्थ तत्थ 'अधोववाइए' अध इति अणंतरे, अह ते सकम्मनिद्दिटुं अण्णतरं गतिं गया, उवयाते जाता उववाइया फुसंति, | जं भणित-वेदेति, अहबा फरिसो नियमेण सम्वेसि अस्थि, रसातिविसया केसिंचि अस्थि केसिंचि नत्थि, तत्थ नेरइएहिं फासा |
सीता उसिणा य, असिपत्तकरकयकुंभीपागादि, एवं तिरियमाणुएहिंवि जहा सकम्माविहिते इटाणिवे, अहवा बहुणि हत्थछेयणाणि | | जाव तालणाईणि पाविहिति, सीसो पुच्छति-ते भगवं ! ता कनिकेयणिचयणिविट्ठा पुढो पुढो जाययो पगप्पंता तत्थ तत्थ संथवे । | करेमाणा अधोववातिए फासे वेदेमाणा सब्वे समवेयणा भवंति !, णो तिगडे समवे, कही, 'चिटुं कृरेहिं कम्मेह' चिदंति
वा गादति वा एगट्ठा, जेत्तिया अज्झवसाया चिट्ठ हिंसातिकूरकम्मेसु पवअंति, विविहं परिचिट्ठति, णरगेसु जहनेगं दसवासस-17 | हस्साई तेण परं समयाहिया जाव तेचीसं सागरोवमाई चिट्ठति, 'चिटुं चिट्ठतरंति एत्थ इमाओ दो कारगगाहाओ 'अस्सण्णी | खलु पदम०' जहा ठिती तहा वेपणा, विणा चिटुं कूरेहिं जहा जहा तस्स हिंसादीणि ण अतिकूराई कम्माई भवन्ति, तंजहा-असण्णी | खलु पदम, एवं समिणोवि जहा जहा मंदझवमागा भवंति तहा तहा नेरइयाउहेऊसु वट्टमाणाविण चिट्ठति, न दिग्घकालट्ठिईएसु । | नरएसु उववअंति, ण वा अतिचिट्ठ वेदणावेदणं, एवं तिरियमणुय०, एवं सुभकम्मे सुवि चिट्ठ अकरहिं चिट्ठ परिचिट्ठति, 'एगे |
वृत्यक
[१३०१३३]
॥१४॥
दीप अनुक्रम [१४३१४६]
र
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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