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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [३], उद्देशक [3], नियुक्ति: [२१४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ११५-१२०] (०१) प्रत वृत्यक [११५१२०] पोशाचा-10 अप्पणो परस्स य, जीवितपरिवंदणमाणणा पुन्वणिता, जसि एगे पमादेति' एवं रागहोसाभिभूता अत्तट्ठा परवा वा परिवंद- प्रमादादिः गंग पत्र- णातिणिमित्तं, जंमि एगे असंजता पमातं करेंति अप्पणो परेसिं च, जो लोगुतरावा पासस्थाति जे दुहतो परिवंदण० धम्मे पमादेति || चूर्णिः ण ते दुक्खक्खयं करेंति, पडिपक्वभूता अप्पमायिणो, ते तु 'सहित धम्ममादायि' पाणदरिसणसहितो चरित्तधम्म आदाय, | ॥१५॥ | जं भणितं घेत्तुं 'पुट्ठो णो झंझाए' सीतोसिणेहिं परिसहेहिं, झंझा णाम वाउलो, सीतेहिं रागझंझा उण्हेहिं पत्तेहिं दोसझंझा, एवं | अण्णेसुवि इवाणिद्वेसु झंझणा कायचा, पढिज्जइ य-'सहिते दुक्खमत्ताए' मीयत इति मचा, जंभणितं परिमाणं, ताए दुक्ख| मायाए अप्पाए वा महतीए वा अवि जीवितभेदकारिणीए पुट्ठो को झंझाए-कोर्ष माणं वा ण कुजा, ण व सुहझंझं पत्थेति, पासिमं| | दविए' परसतीति पासिमं, कि एतं , जं भणित--संधि लोगस्स जाव णो झंझाएत्ति एतं पस्सति, दवियो रागदोसषिमको.TV लोकतांति लोगो, आलोकतीति आलोको, लोगालोगो, जो जेहिं गाए बद्दति सो तेणप्पगारेण आलोकति, जं भणित-दिस्मति |तंजहा-नारइयत्तेण, एवं सेसेसुवि पिहिप्पिहेहि सरीरवियप्पेहिं आलोकति सरीरे, पगतो वंचो पर्वचो सुहुमपजत्तासुरूवसुहाति MAIसेतरा एवमादि० पवंचो तओ लोगालोगपर्वचाउ साधु आदितो मिसं मुञ्चति, सदेवमणुयामुराए परिसाए मझगारे वीतरागत्ता सन्चगणुत्ता य णिविसंकं । सीतोसणिजस्स तृतीयोदेशकः ३-३।। णिज्जुत्तीए भणितो संबंधो, परंपरेण जागर वेरोबरते जातिं च बुडि वा विदित्ता णिकम्मदंसी जो लोगालोगा पमुच्चति, स ul प्रण एवं मुचति-से बंता कोहंच' से इति णिसे सीतोसिणचाई निग्गंथे चंता कोई माणं माय लोभ च, कोहमाणमायालोमा || IN इति वत्तब्वे पिहसुत्तकरणं दरिसति अणंताणुबंधाइ एकेको चउन्धिहो, जया तेसिं उबसमं करेति तदा एककं चेव उवसामेति, ] ॥१२॥ दीप अनुक्रम [१२५१३३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: तृतीय-अध्ययने चतुर्थ-उद्देशक: 'कषायवमन' आरब्धः, [137]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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