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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यक [९६ १०४] दीप अनुक्रम [९८ १०८] श्री आचा रांग सूत्र चूणिः ॥ ९९ ॥ भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ २ ], उद्देशक [६], निर्युक्तिः [१९७...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक ९६-१०४] पिओ पसंसिते, अण्णेऽवि अपसत्थसंगामवीरा ण ते पसंसिता, भाववीरों पसंसितो, जो किं करेति ?, भण्णति- "जे बने पडिमोयए' जे इति अणुदिट्ठस्स गद्दणं, अडप्रकारेण कम्मेण मद्धे संते पडिमोए आयप्पओगेण बद्धे सम्मं उपदेसंतो, कारणे कज्जुबयारे संपयं पडिमोएति, जं भणितं पडिमोयावेति, तित्थगरी जो य कयत्थो उत्तमो, गगहराति वा थेरा उभयतारा इति, एवं से जहामणितकहणाविधिजुत्ता 'उड़े अहे तिरियं' पण्णवगदिसा पहुच उई या अहे वा तिरियं वा चउसुचि दिसासु 'से सनो' स इति पुत्रभणितो कहगो, सब्बओ उई अहे तिरियं दिसासु, ण तस्स कम्मासची कठोयिवि भवति, 'सवपरिण्णाचारि'ति सव्वकालं सभासद आतपदेसेहिं परिण्णा दुविधा जागगापरिष्णा पञ्चकखाण परिण्णा य, जाणणापरिण्णा दुविधा-केवलिया छाउमस्थिया य, छाउमत्थिगी चउब्विा, केवलिंगी एगविद्या, पथक्खाणपरिण्णा दुविधा - मूलगुणपञ्चकखाणपरिण्णा उत्तरगुणपञ्चक्वाणपरिष्णा य इति एवं सध्यपरिष्णं सध्यओ परिजाणित्ता चरति सच्चतो सन्त्रपरिण्णचारी, जं भणितं जाणित्ता असंजमजोगे ण करेति, अथवा अविहिकहणादोसे चिह्निकहणागुणे य सन्चओ सव्त्रपरिष्णचारी, णचा अविहिकडणं पञ्चकखाइत्ता चरतीति सथ्यपरिष्णचारी, सो एवं 'ण लिप्यति' ण पडिसेहे, लिप्पतित्ति जुञ्जति, छणणं हिंसा छणणस्स पदं छणणपदं, जं भणितं - हिंसापदं, बिहीए कहतो व छणेण लिप्पति तं णो अकुस्सेज वा उसेजेअ वा उपहसेज वा नो बत्थादि अवहरि वा सो एवं विहीए कहतो नागदंसणचरितवविणयेहिं ण छलिजति, तथा तारिसं धम्मं न कहेति जेण पाणभूयाणं छगणा होजा, जहा अन्नउत्थिया एगंतेण उद्देसियामिहाणं पसंसंति विहाराति कारेंति एवमादी, वीरो पुत्रभणितो, किं एत्तियं वीरलक्खणं जो ण लिप्पति छणणपण, उदाहू अपि ?, भष्णति 'से मेहावी' मेहया धावतीति मेधावी, सो बुद्धिमां, जो 'अणुग्धामणस्स' अगति जेणं बद्धमोचनादि [111] ।। ९९ ।। पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र - [०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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