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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यक [९६ १०४] दीप अनुक्रम [९८ १०८] श्रीआचा रांग सूत्रचूर्णिः ॥ ९८ ॥ भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [२], उद्देशक [६], निर्युक्तिः [१९७...], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक ९६-१०४] वत्थातितं छिंदि वा एवं अविहिकहणाए दोसा भवंति के दोसा ?, भण्णति- 'तत्थवि जाण सेयंति णत्थि जो सदहेउ वघा कोति धम्महालद्धिसंपण्णो तेण कहेयब्वं चउच्चिहाए कहाए, जो पुण ण सदहेतु तेण संवेयणिणिवेपणीए कहेयच्या, किं निमित्तं विक्खेवणी ण कहिजति १, भण्णति मा सो अमिणवसट्टो परेहिं बुग्गाहिजे तश्चणियगेरुपससरकखमादीहि, अम्हवि अहिंसा इंदियदमो य बेरग्गं मोक्खो य, पच्छा सो पुत्र अविकोवितोषि परिणमति, अण्णद रिसीवि होऊण एवं 'एत्थवि जाण सेयंति णत्थिति, किंच-जति सहहेतु अविकोवितो भगड परिसामज्यो-इणमेव निग्गंथं पवयणं सधं, सेसाणि कुदरिसणाणि मुमा, एस्थवि जाण सेयंति णत्थि, कई ?, पच्छा तत्थ तचभिओषासगो चोदितो, सो य तं न नित्थरह, पच्छा ओभावणा पवयणस्स, भांगवता गरुयसो वा अवियदृणे अणातियमाणे एत्थवि जाण णत्थि सेयंति, केणइ पुच्छिओ भगइ अस्थि अप्पा, ततो परेण चोइओ अस्थि अप्पा, एगते अन ते उभयदोसा, एत्थ जाण गरिथ सेयंति, भणिया अविहिकहणा, इदाणिं खितं विचार्यते तत्थ खे तं जाणियन्त्रं, केण भावितं धीयारभावितं तच्चण्णियभावितं वा भाविते तेसिं अविरुद्धं कहेयां, सामण्णग्गणेण वा कालं मिक्खावेलादि अपरिहवनेणं सदा सुभिक्खदुभिक्खं गाउं कहेय, तहा भावं गाउँ कयच्वं तत्थ इमं सुतं- 'के अयं पुरिसो' के इति पुण्णो तुच्छो वा ?, अडवा किं दारुणमभावो इतरो वा ? जति रायी ततो तस्स दोसे असूयंते कहेपब्वं, एवं जाब चंडालो, 'कंच णत'त्ति कयरं पचवणं णतो णाम पडिवण्णो, संखं बुद्धं एवमादि, जं पणओ ण तस्स आतीए दोसे कहे, मा ते दोसा भविस्संति, अवियट्टणे अणातियमाणे जदा दरिसणे उम्पाडो भवति तदा तदोसा कहिअंति, एवं जहोवदिट्ठा सुसंबुज्झमाणा गुणादीहि उबवेता कहणा, दोसविसुद्धधम्मकहागुणोववेओ 'एस वीरे पसंसिते' 'एम' इति जो भणितो वीरो पुव्त्रभणितो पसंस अविधिकथनदोषाः [110] ।। ९८ ।। पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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