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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [२], उद्देशक [६], नियुक्ति: [१९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ९६-१०४]
(०१)
जहा बजार
२ अध्य/
उद्देश:
प्रत वृत्यक
श्रीआचा
कम्मस्स कुसला परिणाउं, एवं अट्ठविहकम्म जाणणापरिणा बत्तव्या, तस्स अस्सवे य, तंजहा- नाणपडिणीययाए दसणपडि- सर्वकथन रांग सूत्र- Nणीययाए० एवमादि णचा पञ्चक्खाणपरिणाए पडिसेहेति, भणितं आसवदारेहिं ण बर्दति.'सव्यसो'त्ति सबप्पगारेहि, जोग।
| जहा बज्झति जचिरकालठितियं वा पंधति अहवा केवली सम्बं परिणाय कहयति चोदसपुब्बी सम्वे पण्णवणिजे भावे जाणति,
| गणहरपरंपरएणं जाव संपण्णं, कहा चउचिहा, तंजहा-अक्खेवणी विक्खेवणी संवेयणी णिव्वेयणी, ताहे कहेइ सो केरिसओ', ॥१६॥
| मण्णति-'जो अणण्णदंसी' अण्ण इति परिवञ्जणे तिष्णि तिसट्ठा पावातियसया अण्णदिट्ठी, अणण्णदरिसी बताई तत्वबु| दीए पेक्खति, इमं एक जइणं तत्तबुद्धीए पासति, जो अणण्णदिट्ठी सो नियमा 'अणण्णारामों' ण अण्णत्थारमतीति अणण्णा
| रामो, गतिपच्चागतिलक्खषणं भण्णति-'जे अणण्णारामों से णियमा अण्णदिट्ठी, जं भणितं सम्मदिट्ठी, ण य अण्णदिट्ठीए । B. रमति, सहा विसपकसायादिलक्खणे अचरिचे अतवे ण य रमति, सो एवंविहो अन्नपि ठावयति केवलीपणचे धम्मे चउबिहाए| || कहाए अरचो अट्ठी आघवेमाणो पण्णचेमाणो, पीयरागे सुणिउणं संपचयो भविस्मति, तं कह १, भण्णति-'जहा पुण्णस्स। | कत्थति तहा तुच्छस्स' पुण्णो णाम सब्वमणुस्सेसु रिद्धिमा चक्कचट्ठी तदगंतरं वासुदेववलदेवमहामंडलियईसर जाव सत्यवा| हादि, तुच्छा तणहारगादि, अहवा पुण्णो जाइसंपण्णाति तन्निवरीओ तुच्छो, अहवा बुद्धिमंतो पुण्णो मंदबुद्धी तुच्छो, जेण आय
रेण जेण आलंबणेण पुण्णस्स कहिअति तहा तुच्छस्स, गतिपञ्चागतिलक्खयोण जहा तुस्स कहि अति तहा पुण्णस्स, जं भणित| जहा तुच्छस्स ण अण्णहेउं० च कति तहा पुण्णस्सचि, सोयारं वा प्रति विष्णाणकहाए वायसंपन्ने विवजओ, विण्णाणमंतस्स | निउणं कहिञ्जति धृलबुद्धिस्स जहा परियच्छति तहा कहिजति, भणियं च-"निउणं अत्यं." "तत्थ आलंबणं तुल्लं." उस्सग्गेणं HELI|९६ ॥
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दीप अनुक्रम [९८१०८] |
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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